MCOCA Act के तहत चल रही समवर्ती कार्यवाही SC/ST Act के तहत मुकदमे में देरी के लिए पर्याप्त कारण नहीं: हाईकोर्ट ने जमानत दी

Update: 2025-08-16 11:24 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर पीठ) ने माना कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 (MACOCA Act) के तहत लंबित मुकदमे का अपने आप में किसी अन्य मुकदमे को स्थगित रखने का पर्याप्त कारण नहीं है। इसलिए मुकदमे में प्रगति के बिना लंबे समय तक हिरासत में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शीघ्र सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन है।

जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के की पीठ गोंदिया सेशन कोर्ट द्वारा आईपीसी, शस्त्र अधिनियम, SC/ST Act और बॉम्बे पुलिस एक्ट के तहत हत्या और अन्य अपराधों के आरोपी जुल्फिकार उर्फ छोटू को ज़मानत देने से इनकार करने के आदेश को चुनौती देने वाली आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी।

यह मामला 2012 में दर्ज किया गया था। शर्तों के उल्लंघन के कारण उसकी पिछली ज़मानत रद्द होने के बाद सितंबर, 2020 से हिरासत में बंद अपीलकर्ता ने इस आधार पर रिहाई की मांग की कि लगभग पांच वर्षों की कैद में एक भी गवाह से पूछताछ नहीं की गई।

अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता की फरारी, हत्या में उसकी कथित प्रत्यक्ष भूमिका और उसके खिलाफ एक अन्य मकोका-मुकदमे के लंबित होने का हवाला देते हुए ज़मानत का विरोध किया, जिसे MCOCA-मुकदमे की धारा 10 के तहत प्राथमिकता दी गई और कथित तौर पर इसी के कारण देरी हुई।

न्यायालय ने कहा कि जहां तक कानूनी स्थिति का प्रश्न है, इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि अनुच्छेद 21 वर्तमान अपीलकर्ता को शीघ्र सुनवाई का अधिकार प्रदान करता है। यदि इसका उल्लंघन होता है तो उसे अपराध की प्रकृति की परवाह किए बिना जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम के समरूप प्रावधानों की तरह MACOCA Act की धारा 10 का उद्देश्य तारीखों के टकराव से बचने के लिए मकोका मुकदमों को प्राथमिकता देना था न कि अन्य मुकदमों को अनिश्चित काल के लिए रोकना। न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान केवल MACOCA Act मुकदमों के शुरू होने के बाद ही लागू होता है, जब ऐसी कोई आवश्यकता ही न हो तो वर्तमान मामले को स्थगित रखने का औचित्य नहीं बनता।

उन्होंने कहा,

“किसी मामले की कार्यवाही को वरीयता या पूर्वता नहीं मिलती बल्कि विशेष न्यायालय द्वारा MACOCA Act के अपराध की सुनवाई को वरीयता मिलेगी। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि धारा 10 तभी लागू होगी और प्रभावी होगी, जब MCOCA के तहत अपराध की सुनवाई शुरू हो चुकी हो। यदि सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है तो धारा 10 के लागू होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।”

न्यायालय ने 'स्थगित रखा गया' की व्याख्या इस प्रकार की कि यदि दोनों मामलों की तारीखें एक ही हैं तो MCOCA के तहत मामले को प्राथमिकता मिलेगी। इसने माना कि MACOCA के तहत मुकदमा देरी का पर्याप्त कारण नहीं है:

न्यायालय ने कहा,

“MCOCA के तहत मुकदमा पहले ही अपने अंतिम चरण में है और यह केस लॉ प्रस्तुत करने के लिए है, इसलिए इस मामले की सुनवाई को स्थगित रखने का कोई कारण नहीं है।”

यह पाते हुए कि अपीलकर्ता 09 सितंबर, 2020 से हिरासत में है और उसकी सुनवाई में कोई प्रगति नहीं हुई है। शीघ्र सुनवाई के उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है। न्यायालय ने जमानत देने से इनकार करने वाले आदेश को रद्द कर दिया और कड़ी शर्तों के साथ 50,000 के निजी मुचलके पर उसे रिहा करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल: ज़ुल्फ़रकर बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य

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