यदि ड्यूटी पर वापस आने के लिए नोटिस जारी नहीं किया गया तो स्वैच्छिक रूप से नौकरी छोड़ना स्वीकार नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2024-04-05 11:14 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस संदीप वी. मार्ने की सिंगल बेंच ने प्रेमसंस ट्रेडिंग (पी) लिमिटेड बनाम दिनेश चंदेश्वर राय के मामले में एक सिविल रिट याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि स्वैच्छिक रूप से नौकरी छोड़ना तभी साबित हो सकता है, जब नियोक्ता ने कर्मचारी को नोटिस जारी करके उसे अपनी ड्यूटी पर वापस आने का निर्देश दिया हो।

मामले की पृष्ठभूमि

प्रेमसंस ट्रेडिंग (पी) लिमिटेड (याचिकाकर्ता) निजी कंपनी है, जो व्यापार व्यवसाय में लगी हुई है। दिनेश चंदेश्वर राय (प्रतिवादी) को 1988 में याचिकाकर्ता के खुदरा स्टोर में काउंटर-बॉय के रूप में नियुक्त किया गया। 2005 में प्रतिवादी को याचिकाकर्ता के गोदाम में ट्रांसफर कर दिया गया।

हालांकि, फरवरी 2013 में प्रतिवादी ने अपने मूल स्थान पर जाने के लिए 35 दिनों की छुट्टी मांगी और धीरज प्रेमजी गाला द्वारा इसे मंजूर कर लिया गया, जो याचिकाकर्ता के निदेशकों में से एक है। वहीं याचिकाकर्ता के अन्य निदेशक भरतभाई दामाजी गाला छुट्टी के कारण नाराज हो गए और मौखिक रूप से प्रतिवादी को सूचित किया कि उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई।

प्रतिवादी ने उप श्रम आयुक्त से संपर्क किया और उनके विवाद को सुलह में स्वीकार कर लिया गया। वहीं याचिकाकर्ता सुलह अधिकारी के सामने पेश होने में विफल रहा। इस प्रकार उचित सरकार द्वारा प्रतिवादी की बहाली के संबंध में द्वितीय श्रम न्यायालय को संदर्भ दिया गया, जिसमें समाप्ति की तारीख से बकाया वेतन के साथ प्रतिवादी की बहाली का निर्देश दिया गया।

पक्षकारों को सुनने के बाद द्वितीय श्रम न्यायालय ने प्रतिवादी की बहाली के साथ बकाया वेतन के साथ अवार्ड दिया। इस प्रकार, याचिकाकर्ता द्वारा द्वितीय श्रम न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उपरोक्त सिविल रिट याचिका दायर की गई।

याचिकाकर्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी को सेवा से बर्खास्त नहीं किया गया, बल्कि यह स्वेच्छा से नौकरी छोड़ने का मामला है। याचिकाकर्ता ने लंबी छुट्टी स्वीकृत करने में असमर्थता व्यक्त की थी, इसलिए प्रतिवादी ने खुद को ड्यूटी से अनुपस्थित कर लिया गया।

दूसरी ओर प्रतिवादी द्वारा यह तर्क दिया गया कि स्वैच्छिक रूप से नौकरी छोड़ने का बचाव गलत है और स्वैच्छिक रूप से नौकरी छोड़ने के मामले में भी कर्मचारी को अपनी ड्यूटी पर वापस आने के लिए नोटिस जारी करने की आवश्यकता होती है।

न्यायालय के निष्कर्ष

न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी ने प्रतिवादी को उसकी छुट्टी समाप्त होने के दिन मांग पत्र दिया, लेकिन मांग पत्र की सेवा तक याचिकाकर्ता द्वारा प्रतिवादी को ड्यूटी पर उपस्थित होने के लिए कोई नोटिस नहीं दिया गया। इसके अलावा, सितंबर 2014 में प्रतिवादी ने अपनी ड्यूटी पर वापस आने की सूचना दी, लेकिन धीरज प्रेमजी गाला द्वारा उसे ड्यूटी पर आने की अनुमति नहीं दी गई। अक्टूबर 2014 में ही प्रतिवादी को अपनी ड्यूटी फिर से शुरू करने की पेशकश की गई, जो स्पष्ट रूप से एक बाद का विचार है।

अदालत ने आगे कहा कि स्वैच्छिक रोजगार परित्याग की दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि याचिकाकर्ता प्रतिवादी को अपने कर्तव्यों को फिर से शुरू करने के लिए कहने वाला नोटिस देने में विफल रहा।

कहा गया,

"यह अच्छी तरह से स्थापित कानून है कि स्वैच्छिक परित्याग साबित करने के लिए नियोक्ता को कामगार को उसे फिर से काम पर लौटने का निर्देश देने के लिए नोटिस जारी करना चाहिए और इस तरह के नोटिस के अभाव में स्वैच्छिक रोजगार परित्याग को स्वीकार नहीं किया जा सकता।"

हालांकि, अदालत ने पक्षों के बीच अप्रिय संबंधों पर विचार किया और माना कि बहाली पक्षों के हित में नहीं होगी। इस प्रकार अवार्ड बहाल करने और पिछले वेतन के बदले एकमुश्त मुआवजे में संशोधित किया।

उपरोक्त टिप्पणियों के साथ सिविल रिट याचिका को आंशिक रूप से अनुमति दी गई।

केस टाइटल- प्रेमसंस ट्रेडिंग (पी) लिमिटेड बनाम दिनेश चंदेश्वर

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