बिजली अधिनियम की धारा 151 के तहत अनधिकृत व्यक्ति द्वारा दर्ज शिकायत पर संज्ञान लेने से पूरी कार्यवाही अमान्य: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2025-11-13 11:35 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि किसी अदालत द्वारा बिजली अधिनियम 2003 की धारा 151 के तहत अनधिकृत व्यक्ति द्वारा दायर शिकायत पर संज्ञान लिया जाता है तो यह केवल एक प्रक्रियात्मक त्रुटि नहीं बल्कि मूलभूत अवैधता है, जो पूरे मुकदमे को निष्फल कर देती है।

जस्टिस एम. एम. नेर्लिकर की एकल पीठ राज्य सरकार की उस आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को बरी किए जाने के आदेश को चुनौती दी गई थी।

मामले के अनुसार, उड़नदस्ता (फ्लाइंग स्क्वाड) ने आरोपी के आइस फैक्ट्री का निरीक्षण किया, जहां बिजली मीटर से छेड़छाड़ पाई गई। मीटर 73.68% धीमा चल रहा था, जिससे 8,768 यूनिट (46,032 ) की बिजली चोरी का संदेह जताया गया। इसके आधार पर आरोपी के खिलाफ धारा 135 और 138 के तहत FIR दर्ज की गई।

ट्रायल के दौरान गवाह ने स्वीकार किया कि वह उड़नदस्ता का सदस्य और प्रभारी उपकार्यकारी अभियंता था, परंतु उसने ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया, जिससे यह सिद्ध हो कि उसे धारा 151 के तहत रिपोर्ट दर्ज करने का अधिकार प्राप्त था।

अदालत ने महाराष्ट्र राज्य संशोधन (23 जून 2005 से प्रभावी) का उल्लेख करते हुए कहा कि FIR केवल उचित प्राधिकरण, आयोग, उनके अधिकृत अधिकारी, मुख्य विद्युत निरीक्षक, विद्युत निरीक्षक, लाइसेंसी या जनरेटिंग कंपनी द्वारा ही दर्ज की जा सकती है।

अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता इनमें से किसी भी श्रेणी में नहीं आता था, अतः वह अनधिकृत व्यक्ति था।

न्यायालय ने कहा,

“जब स्वयं अधिकारी ही सक्षम नहीं था तब ऐसी शिकायत पर संज्ञान लेना केवल औपचारिकता नहीं बल्कि कानून का उल्लंघन है। धारा 151 स्पष्ट रूप से यह निर्धारित करती है कि कौन-सा अधिकारी रिपोर्ट दर्ज कर सकता है और इस सीमा को दरकिनार नहीं किया जा सकता।”

राज्य सरकार के इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कि यह केवल प्रक्रियात्मक त्रुटि थी, अदालत ने कहा कि यह संज्ञान की अवैधता है, जो पूरे मुकदमे को अमान्य कर देती है।

अदालत ने कहा कि जब विधि ने स्पष्ट रूप से यह निर्धारित कर दिया है कि कौन व्यक्ति अभियोजन प्रारंभ कर सकता है तो उस सीमा का उल्लंघन करके की गई कार्यवाही वैध नहीं ठहराई जा सकती।

न्यायालय ने निष्कर्ष दिया कि ट्रायल कोर्ट ने जिस शिकायत पर संज्ञान लिया वह अवैध रिपोर्ट पर आधारित थी, जिससे पूरी कार्यवाही शून्य हो जाती है।

अतः हाईकोर्ट ने राज्य की अपील खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि अनधिकृत व्यक्ति द्वारा दायर शिकायत पर संज्ञान लेना अभियोजन के लिए घातक है और ऐसी कार्यवाही विधि के अनुसार टिक नहीं सकती।

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