बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: स्वीकृत पदों की अनुपलब्धता के कारण श्रमिकों को स्थायी दर्ज़ा देने से इनकार नहीं किया जा सकता
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि जिन श्रमिकों ने लगातार सेवा की आवश्यक अवधि पूरी कर ली है, उन्हें केवल इस आधार पर स्थायी दर्जा देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि स्वीकृत पद उपलब्ध नहीं हैं। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि ऐसा इनकार श्रमिकों का लगातार शोषण होगा, जो कल्याणकारी कानून और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।
जस्टिस मिलिंद एन. जाधव संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के 22 वन श्रमिकों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। ये श्रमिक 2003 से चौकीदार, माली, रसोइया और जंगली जानवरों के पिंजरे के परिचर के रूप में काम कर रहे थे। उनके कर्तव्यों में बाघों, शेरों और तेंदुओं को खाना खिलाना पिंजरों की सफाई, दवाएं देना और पार्क में गश्त व आग पर नियंत्रण जैसे जोखिम भरे काम शामिल हैं। हालांकि वे दशकों से स्थायी कर्मचारियों के साथ काम कर रहे हैं लेकिन स्थायीकरण के उनके दावे को औद्योगिक न्यायालय ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि कोई स्वीकृत पद उपलब्ध नहीं है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि उन्होंने लगातार पांच वर्षों से प्रत्येक कैलेंडर वर्ष में 240 दिनों की सेवा पूरी कर ली है, जैसा कि वन विभाग द्वारा रखे गए उपस्थिति रजिस्टरों में दर्ज है। उन्होंने 16 अक्टूबर, 2012 के सरकारी प्रस्ताव का हवाला दिया, जिसमें दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को पांच साल में 240 दिनों की सेवा पूरी करने पर स्थायीकरण देने की आवश्यकता है।
राज्य ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ता केवल अस्थायी कर्मचारी हैं, जिन्हें किसी स्वीकृत पद या चयन प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्त नहीं किया गया। वहीं 2012 के प्रस्ताव के तहत बनाए गए 125 अतिरिक्त पद पहले ही भरे जा चुके हैं।
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं का काम स्थायी कर्मचारियों द्वारा किए गए काम के समान है और वे थोड़ी सुरक्षा के साथ खतरनाक कर्तव्यों में लगे हुए हैं। कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए उन्हें स्थायीकरण से वंचित करना, क्योंकि कोई स्वीकृत पद उपलब्ध नहीं है, अनुचित श्रम प्रथाओं और शोषण को बढ़ावा देगा।
अदालत ने कहा,
“एक बार जब याचिकाकर्ताओं ने लगातार 5 साल की अवधि के लिए प्रत्येक कैलेंडर वर्ष में 240 दिनों के काम की दोहरी शर्त का पालन किया और उन्हें वर्षों तक वन विभाग द्वारा जारी रखा गया तो उन्हें एक स्वीकृत पद की अनुपलब्धता के आधार पर स्थायी दर्जा से वंचित नहीं किया जा सकता। यदि सरकार के तर्क को स्वीकार कर लिया जाता है तो यह इन श्रमिकों की गुलामी और बंधुआ मजदूरी के समान होगा।”
कोर्ट ने टिप्पणी की कि जो श्रमिक दशकों से स्थायी श्रमिकों के साथ लगातार काम कर रहे हैं, उन्हें स्थायीकरण, अर्जित अवकाश, आकस्मिक अवकाश, चिकित्सा अवकाश, चिकित्सा सुविधा, भविष्य निधि योजनाओं और ऐसे अन्य सभी सामाजिक कल्याण प्रावधानों से वंचित नहीं किया जा सकता है।
तदनुसार, कोर्ट ने औद्योगिक न्यायालय के 12 दिसंबर, 2022 का आदेश रद्द कर दिया और राज्य को याचिकाकर्ताओं को स्थायीकरण देने का निर्देश दिया। इसने आठ सप्ताह के भीतर बकाया अंतर वेतन की गणना और भुगतान का भी निर्देश दिया, जिसके बाद अदालत को अनुपालन रिपोर्ट देनी होगी।