मुंबई में बढ़ते वायु प्रदूषण पर बॉम्बे हाईकोर्ट सख्त, निर्माण स्थलों की निगरानी के लिए पांच सदस्यीय टीम गठित
मुंबई में लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए शुक्रवार को पांच सदस्यीय टीम का गठन किया, जो शहर के दो चयनित क्षेत्रों में जाकर निर्माण स्थलों का स्वतंत्र निरीक्षण करेगी और यह जांचेगी कि बृहन्मुंबई महानगरपालिका द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन हो रहा है या नहीं।
चीफ जस्टिस श्री चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम अंखाड की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि इस टीम का उद्देश्य महानगरपालिका और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल द्वारा किए जा रहे दावों की वास्तविक स्थिति से तुलना करना है, क्योंकि एक ओर सरकारी एजेंसियां निगरानी की बात कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर न्यायालय के सहयोगी अधिवक्ता लगातार यह तर्क दे रहे हैं कि वर्ष 2023 से मुंबई की वायु गुणवत्ता लगातार बिगड़ती जा रही है। न्यायालय ने कहा कि एक स्वतंत्र स्रोत से जांच रिपोर्ट प्राप्त की जानी आवश्यक है, जो दो विशिष्ट क्षेत्रों में जाकर मौके पर अध्ययन करे और दस दिनों के भीतर अदालत को रिपोर्ट सौंपे।
गठित टीम में महानगरपालिका, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल, राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी तथा नागरिक समाज के दो सदस्य शामिल होंगे। खंडपीठ ने निर्देश दिया कि यह टीम स्वयं तय करेगी कि किन क्षेत्रों का निरीक्षण किया जाना है और वहां निर्माण स्थलों पर यह परखा जाएगा कि महानगरपालिका के दिशा-निर्देशों का पालन किया जा रहा है अथवा नहीं।
यह मामला अक्टूबर 2023 से लंबित स्वतः संज्ञान जनहित याचिका के तहत सुनवाई में है। इस दौरान न्यायालय के सहयोगी सीनियर एडवोकेट ने दलील दी कि ऐसे कोई पुख्ता दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, जिनसे यह साबित हो सके कि निर्माण स्थल, जो शहर में धूल प्रदूषण का एक बड़ा कारण हैं। महानगरपालिका के 27 सूत्रीय दिशा-निर्देशों का अनुपालन कर रहे हैं। इन दिशानिर्देशों के तहत निर्माण स्थलों पर अनिवार्य रूप से वायु गुणवत्ता सेंसर लगाने, पानी का छिड़काव करने, मलबा ढोने वाले वाहनों को ढकने, सीसीटीवी लगाने जैसी व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने का प्रावधान है।
उन्होंने यह भी कहा कि अब केवल कागजी योजनाओं पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है बल्कि दीर्घकालिक और सख्त क्रियान्वयन वाली नीति अपनानी होगी। प्रदूषण बढ़ने पर तात्कालिक और प्रतिक्रियात्मक कदमों से समस्या का समाधान नहीं होगा।
वहीं, गैर-सरकारी संस्था की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट ने अदालत से मांग की कि पूर्व आदेशों के उल्लंघन पर महानगरपालिका और प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाए। उन्होंने नवंबर, 2023 के उस आदेश का उल्लेख किया, जिसमें एक समिति गठित कर रोजाना और साप्ताहिक रिपोर्ट अदालत को देने का निर्देश दिया गया, लेकिन ऐसी अंतिम रिपोर्ट मार्च 2025 में ही प्रस्तुत हुई।
खंडपीठ ने दिल्ली में प्रदूषण की भयावह स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां बीते 15–20 वर्षों से हालात गंभीर बने हुए हैं, जबकि मुंबई में अभी भी सुधार की पूरी संभावना है, बशर्ते ठोस कदम उठाए जाएं। अदालत ने संकेत दिया कि फिलहाल सबसे बड़ा ध्यान निर्माण स्थलों से उठने वाले धूल प्रदूषण पर रहेगा और इस दिशा में त्वरित उपाय संभव हैं। इसी क्रम में टीम को दस दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया।