जमानत के लिए शर्तें लगाते समय ट्रायल कोर्ट आरोपी को पासपोर्ट के लिए आवेदन करने, उसे प्राप्त करने और फिर उसे सरेंडर करने का निर्देश नहीं दे सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2024-07-11 07:01 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ ने मंगलवार को कहा कि जमानत देते समय ट्रायल कोर्ट के पास किसी व्यक्ति/आरोपी को पासपोर्ट के लिए आवेदन करने उसे प्राप्त करने और फिर उसे जमानत पाने के लिए सरेंडर करने का निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है।

सिंगल जज जस्टिस भारत देशपांडे ने गोवा के अगासैम में ट्रायल कोर्ट द्वारा हत्या के प्रयास के मामले में गिरफ्तार जकाउल्ला खाजी को जमानत देते समय लगाई गई ऐसी असामान्य शर्त को खारिज कर दिया।

जस्टिस देशपांडे ने कहा कि 24 अप्रैल, 2024 को जमानत देने वाले प्रारंभिक आदेश में ट्रायल कोर्ट ने कुछ सामान्य शर्तें लगाई थीं, जैसे कि आरोपी व्यक्ति को स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना, गवाहों या सबूतों से छेड़छाड़ न करना, पीड़ित से संपर्क करने का प्रयास न करना आदि। हालांकि शर्तों में से एक पासपोर्ट को अदालत में जमा करना था। इस शर्त ने खाजी के लिए जेल से बाहर निकलने में बड़ी बाधा पैदा की, क्योंकि उसके पास पासपोर्ट नहीं था।

इसलिए उसे जेल में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बाद उसने संबंधित अदालत में आवेदन दायर कर उक्त शर्त को संशोधित करने की मांग की, जिससे उसे रिहा किया जा सके। हालांकि, एडिशनल सेशन कोर्ट ने जांच अधिकारी को यह पता लगाने का आदेश दिया कि याचिकाकर्ता आरोपी के पास पासपोर्ट है या नहीं।

इसके बाद कार्यालय द्वारा रिपोर्ट दायर की गई, जिसमें कहा गया कि आवेदक ने कभी पासपोर्ट के लिए आवेदन नहीं किया। उक्त रिपोर्ट पर गौर करते हुए न्यायालय ने 13 मई 2024 को नया आदेश पारित करके अपने प्रारंभिक आदेश को संशोधित किया। इस बार न्यायालय ने याचिकाकर्ता को पहले पासपोर्ट के लिए आवेदन करने उसे प्राप्त करने उसे न्यायालय के समक्ष सरेंडर करने और फिर रिहा होने का आदेश दिया। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को उक्त प्रक्रिया पूरी करने के लिए कुल 4 महीने का समय भी दिया।

उक्त शर्त को असामान्य बताते हुए जस्टिस देशपांडे ने कहा,

"जमानत देने की शर्त लगाते समय ट्रायल कोर्ट के पास किसी व्यक्ति को पासपोर्ट के लिए आवेदन करने, उसे प्राप्त करने और फिर उसे सरेंडर करने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है। पासपोर्ट जमा करने का निर्देश तभी दिया जा सकता है, जब याचिकाकर्ता या आरोपी के पास पासपोर्ट हो। पहले लगाई गई असामान्य शर्त और उसके बाद उसे संशोधित न करना स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि एडिशनल सेशन जज ने अपने अधिकारों से परे जाकर ऐसी शर्तें लगाईं, जो सामान्य रूप से जमानत देते समय आवश्यक नहीं होती हैं।"

इसलिए पीठ ने याचिकाकर्ता पर लगाई गई असामान्य शर्त खारिज की और उसे अलग रखा।

केस टाइटल- ज़काउल्ला खाजी बनाम गोवा राज्य

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