26/11 मुंबई आतंकी हमलों में बरी हुआ शख्स पुलिस वेरिफिकेशन के बिना कोई भी नौकरी करने के लिए आज़ाद: राज्य सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट से कहा
महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि फहीम अरशद मोहम्मद यूसुफ अंसारी, जिसे 26/11 मुंबई आतंकी हमले के मामले में बरी कर दिया गया, वह कोई भी ऐसी नौकरी करने के लिए आज़ाद है, जिसके लिए पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट ज़रूरी नहीं है।
अंसारी ने हाईकोर्ट में 'पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट' के लिए अर्जी दी थी ताकि वह अपनी रोज़ी-रोटी कमाने के लिए कोई काम कर सके।
यह मौखिक दलील जस्टिस ए.एस. गडकरी और जस्टिस रंजीतसिंह राजा भोंसले की बेंच के सामने दी गई, जिसने अब अभियोजन पक्ष द्वारा अंसारी के बारे में गोपनीय रिपोर्ट का हवाला देने के बाद मामले की सुनवाई 'इन-चैंबर' करने का फैसला किया।
26/11 मामले में दायर चार्जशीट के मुताबिक, फहीम पर मुंबई के नक्शे बनाने और उन्हें पाकिस्तान में 'मास्टरमाइंड' को सौंपने का आरोप था। हालांकि, इस आरोप को स्पेशल कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया, जिसने 6 मई, 2010 को उसे इस मामले से बरी कर दिया।
हालांकि, फहीम को लखनऊ में उसके खिलाफ दर्ज दूसरे मामले में दोषी ठहराया गया और उस मामले में उसे 10 साल जेल की सज़ा सुनाई गई।
अपनी याचिका में फहीम ने कहा कि नवंबर, 2019 में जेल से रिहा होने के तुरंत बाद उसे मुंबई के बायकुला इलाके में प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी मिल गई, जो जल्द ही COVID-19 महामारी के दौरान बंद हो गई - इस दौरान उसने डिलीवरी बॉय के तौर पर काम किया। इसके बाद उसे मुंब्रा में एक प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी मिल गई।
हालांकि, चूंकि इस नौकरी से होने वाली कमाई फहीम के परिवार का खर्च चलाने के लिए काफी नहीं थी, इसलिए उसने तीन पहिया ऑटो-रिक्शा लाइसेंस के लिए अप्लाई किया, जो उसे 1 जनवरी, 2024 को मिल गया। इसके बाद उसने अनिवार्य पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट (PCC) के लिए अप्लाई किया, जो पुलिस सर्विस व्हीकल (PSV) बैज पाने के लिए ज़रूरी है। यह बैज कमर्शियल मकसद से ऑटो-रिक्शा चलाने के लिए अनिवार्य है। संबंधित पुलिस अधिकारियों से अपने PCC आवेदन की स्थिति के बारे में कई बार पूछने पर भी कोई जवाब न मिलने पर फहीम ने आखिरकार सूचना का अधिकार (RTI) एक्ट के तहत एप्लीकेशन फाइल की, जिसका जवाब उन्हें 13 अगस्त, 2024 को मिला। इसमें अधिकारियों ने उन्हें बताया कि चूंकि वह 'लश्कर-ए-तैयबा' (LeT) के सदस्य हैं, जो एक बैन संगठन है, इसलिए उन्हें PCC नहीं दिया जा सकता। उन्होंने तर्क दिया कि इससे उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ और पुलिस की कार्रवाई 'मनमानी' थी।
याचिका में कहा गया,
"याचिकाकर्ता ने पिछले अपराध के लिए सज़ा का पूरा असर झेला है और समाज को अपना कर्ज़ चुकाया है। इसलिए वह कानूनी तौर पर बिना किसी कानूनी दाग या रुकावट के फायदेमंद रोज़गार पाने का हकदार है। यह तथ्य कि याचिकाकर्ता पर (26/11 हमले) मामले में मुकदमा चला था, उसे अवसरों का लाभ उठाने से रोकने वाला पूरी तरह से बैन नहीं हो सकता, खासकर स्पेशल कोर्ट द्वारा दिए गए और सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी कन्फर्म किए गए बरी करने के आदेश की रोशनी में।"
याचिका में आगे कहा गया कि पुलिस ने उन्हें PCC देने से मना करके उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) और 21 के तहत गारंटीकृत आजीविका के मौलिक अधिकार और जीवन के अधिकार से वंचित कर दिया। इसलिए इसमें अधिकारियों को उन्हें PCC जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई।
यह याचिका शुरू में जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस डॉ. नीला गोखले की डिवीज़न बेंच के सामने लिस्ट की गई। हालांकि बेंच ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।