प्रति माह 10-15% लाभ का वादा प्रथम दृष्टया बेईमानी का इरादा दर्शाता है: बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रेडिंग घोटाला मामले में अग्रिम जमानत याचिका खारिज की
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि शेयर बाज़ार में प्रतिमाह 10 से 15 प्रतिशत तक के गारंटीड मुनाफे का वादा अपने आप में शुरू से ही धोखाधड़ी की मंशा को दर्शाता है। कोर्ट ने माना कि कोई भी वैध और वास्तविक व्यापार इस तरह के असाधारण और सुनिश्चित लाभ नहीं दे सकता, इसलिए ऐसे प्रलोभन को केवल सिविल विवाद मानकर खारिज नहीं किया जा सकता।
जस्टिस अमित बोरकर एक अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें आरोपियों ने गिरफ्तारी से राहत मांगी थी। मामला भारतीय दंड संहिता 2023 (IPC) की धारा 318(4) और 3(5) के तहत दर्ज अपराधों से जुड़ा है।
शिकायतकर्ता एक वकील हैं। उसने आरोप लगाया कि आरोपियों ने उन्हें 30 लाख रुपये इंट्रा-डे शेयर ट्रेडिंग में निवेश करने के लिए प्रेरित किया और 10–15 प्रतिशत मासिक मुनाफे का आश्वासन दिया। शुरू में 4 लाख रुपये बतौर लाभ लौटाए गए और 25 लाख रुपये का सुरक्षा चेक भी दिया गया, लेकिन बाद में शेष राशि वापस नहीं की गई।
कोर्ट ने कहा कि हर अनुबंध उल्लंघन को धोखाधड़ी नहीं माना जा सकता। हालांकि, जब शुरुआत से ही झूठे और अव्यावहारिक वादों के आधार पर निवेश कराया जाता है तो वह आपराधिक धोखाधड़ी के दायरे में आता है।
कोर्ट के अनुसार इंट्रा-डे ट्रेडिंग में प्रतिमाह 10 से 15 प्रतिशत लाभ का आश्वासन अपने आप में अविश्वसनीय और झूठा है। ऐसे वादे से की गई प्रलोभनात्मक निवेश योजनाएँ अपराध की श्रेणी में आती हैं।
आरोपियों की ओर से यह तर्क दिया गया कि मामला महज़ सिविल विवाद का है और यह पेशेवर प्रतिद्वंद्विता से उपजा है। उनका कहना था कि शिकायतकर्ता को ट्रेडिंग जोखिमों की पूरी जानकारी थी और उन्होंने पहले से अधिक राशि वापस भी कर दी है। हालांकि, अदालत ने यह दलील खारिज करते हुए कहा कि इतनी असाधारण कमाई का दावा ही धोखाधड़ी की मंशा को साबित करता है।
कोर्ट ने यह भी गौर किया कि दोनों पक्ष पेशे से वकील हैं और एक आरोपी ने लिखित रूप से स्वीकार किया कि उसने 26 लाख रुपये से अधिक की राशि राजस्व अधिकारियों से लायज़निंग कार्य के नाम पर प्राप्त की थी। अदालत ने इसे आपराधिक और अवैध गतिविधियों का स्पष्ट प्रमाण माना।
सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि मामले में केवल एक लेन-देन नहीं बल्कि पैसों के प्रलोभन निवेश और चूक का एक पैटर्न है, जिसमें कई पीड़ित शामिल हो सकते हैं। इस आधार पर कोर्ट ने माना कि फंड्स के उपयोग का पता लगाने के लिए आरोपियों की हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।
इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।