भाई की पत्नी को साझा घर में रहने से मना करना घरेलू हिंसा के समान: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2025-09-20 07:49 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि किसी महिला को उसके साझा घर (शेयर्ड हाउसहोल्ड) में रहने से रोका जाता है तो यह घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 17 के तहत महिला को साझा घर में रहने का अधिकार है। चाहे उस घर में उसका कोई स्वामित्व, हक या लाभकारी हित क्यों न हो।

मामले के अनुसार गैर-आवेदक नंबर 1 अपने पति की मृत्यु के बाद साझा घर में रहने के लिए गई थी लेकिन पति के भाई यानी आवेदक ने उसे वहां रहने से रोक दिया।

जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के इस आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें एडिशनल सेशन जज के उस आदेश को चुनौती दी गई। इसके तहत मृतक पति की पत्नी और बेटे को साझा घर में रहने का अधिकार दिया गया।

आवेदक ने यह तर्क दिया कि महिला 2004 के बाद से अपने पति के साथ उस घर में नहीं रही। अधिनियम 2005 में लागू हुआ था और एक कथित तलाकनामा भी तैयार हुआ था।

हाईकोर्ट ने उक्त दलीलों को ठुकराते हुए कहा कि अधिनियम की धारा 2(ए) और 2(एफ) में पीड़िता और घरेलू संबंध की परिभाषा उन महिलाओं को भी शामिल करती है, जो किसी भी समय घरेलू संबंध में रह चुकी हैं। 

इसका अर्थ यह है कि भले ही वह वर्तमान में न रह रही हो लेकिन अगर किसी समय घरेलू संबंध में रही है तो उसे इस अधिकार का संरक्षण मिलेगा।

अदालत ने कहा कि साझा घर में रहने का अधिकार केवल वास्तविक निवास तक सीमित नहीं है। यदि महिला घरेलू संबंध में रही है तो वह साझा घर में रहने के अपने अधिकार को लागू कर सकती है।

कोर्ट के समक्ष यह तथ्य आया कि मोहिनी वर्ष 2004 तक अपने पति के साथ उस घर में रहीं और 2008 में पति की मृत्यु के बाद जब उन्होंने पुनः वहां प्रवेश करना चाहा तो उन्हें रोका गया।

अदालत ने माना कि महिला को साझा घर से वंचित करना आर्थिक शोषण है और यह घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है, क्योंकि इससे उसे उस आश्रय से वंचित किया गया, जिसका अधिकार उसे घरेलू संबंध से प्राप्त था।

इसके अलावा, अदालत ने यह भी माना कि कथित तलाकनामा वैध नहीं है, क्योंकि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत विवाह का विघटन केवल सक्षम सिविल अदालत के आदेश से ही हो सकता है।

अदालत ने निवास का अधिकार बरकरार रखा लेकिन आदेश में संशोधन करते हुए स्पष्ट किया कि मोहिनी और उनके बेटे को संपत्ति की पहली मंज़िल पर रहने का अधिकार होगा, जो उनकी सास द्वारा बनाए गए वसीयतनामे के अनुरूप है।

हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को आंशिक रूप से संशोधित करते हुए यह सुनिश्चित किया कि महिला और उसके बेटे को साझा घर में रहने का अधिकार मिले।

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