पत्नी के रंग और खाना बनाने की क्षमता पर तंज कसना उच्च स्तर की प्रताड़ना नहीं, आत्महत्या के लिए उकसावा या क्रूरता नहीं मानी जा सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में 27 साल पुराने मामले में एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि यदि कोई महिला आत्महत्या कर ले, तो उसके रंग-रूप या खाना बनाने की क्षमता को लेकर उसे ताना देना इस हद तक की प्रताड़ना नहीं मानी जा सकती कि उस पर धारा 498-A (दांपत्य प्रताड़ना) और धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) लगाई जाए।
जस्टिस श्रीराम मोडक की एकल पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता पति द्वारा अपनी पत्नी को उसके गहरे रंग को लेकर और ससुर द्वारा उसके भोजन पकाने के तरीके को लेकर ताने देना भले ही प्रताड़ना हो सकता है, लेकिन यह इतनी गंभीर नहीं है कि इसे आपराधिक दायरे में लाया जा सके।
अदालत ने रिकॉर्ड से पाया कि मृतका प्रेमा ने जनवरी, 1998 में कुएं में कूदकर आत्महत्या की थी, जो कि उसकी शादी के पांच साल बाद की घटना थी।
अभियोजन पक्ष ने प्रेमा के रिश्तेदारों के बयानों पर भरोसा किया, जिन्होंने कहा कि प्रेमा ने बताया कि उसका पति अकसर उसके रंग को लेकर ताने मारता था और दूसरी शादी की धमकी भी देता था।
सेशंस कोर्ट सतारा ने 31 जुलाई, 1998 को पति को 498-A और 306 के तहत दोषी करार दिया था। उसे क्रमशः एक साल और पांच साल की सजा सुनाई थी।
जस्टिस मोडक ने प्रेमा के ससुर के बारे में कहा कि उन पर केवल यह आरोप था कि वह अकसर प्रेमा को सही खाना न बनाने को लेकर ताना देते थे लेकिन उन्हें निचली अदालत ने बरी कर दिया था।
अदालत ने 11 जुलाई को दिए आदेश में कहा,
“मृतका ने अपने रिश्तेदारों को पति और ससुर की प्रताड़ना के बारे में बताया था। कारण थे – गहरा रंग और खाना ठीक से न बनाना। अगर इन कारणों को देखा जाए तो ये वैवाहिक जीवन में होने वाले झगड़े हैं। ये घरेलू कलह हैं। इन्हें इस स्तर की प्रताड़ना नहीं माना जा सकता कि कोई महिला आत्महत्या कर ले। इसलिए IPC की धारा 498-A के तहत अपराध नहीं बनता।”
जस्टिस मोडक ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट को यह स्पष्ट रूप से पता था कि धारा 498-A के Explanation (a) में कहा गया कि इच्छापूर्वक किया गया व्यवहार उस स्तर का होना चाहिए, जो गंभीर हो।
“ट्रायल कोर्ट ने तीन गवाहों के बयान के आधार पर प्रताड़ना को गंभीर स्तर की नहीं माना। यहां तक कि यदि प्रताड़ना के कारण स्वीकार भी कर लिए जाएं, तब भी यह मामला 498-A के अंतर्गत नहीं आता। इसलिए ट्रायल कोर्ट का निष्कर्ष रद्द किया जाना चाहिए।”
अदालत ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सही रूप से इस बात को खारिज किया कि मृतका गलती से कुएं में गिर गई थी, क्योंकि मौके पर ऐसा कोई सबूत नहीं था।
अदालत ने कहा,
“यह मानने के अन्य कारण हैं कि यह आत्महत्या थी लेकिन अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि प्रताड़ना और आत्महत्या के बीच कोई सीधा संबंध था। प्रताड़ना थी, लेकिन वह उस स्तर की नहीं थी, जिससे आपराधिक कानून लागू हो सके। ट्रायल कोर्ट का निर्णय कानून की दृष्टि में टिक नहीं सकता। ट्रायल जज इस मामले में धारा 498-A और 306 की मूल आवश्यकताओं को भूल गए।”
अंततः हाईकोर्ट ने सतारा सेशन कोर्ट का 31 जुलाई, 1998 का आदेश रद्द कर दिया और आरोपी पति को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
टाइटल: Sadashiv Parbati Rupnawar vs State of Maharashtra (Criminal Appeal 649 of 1998)