बॉम्बे हाईकोर्ट ने उठाए सवाल: बालिग होते ही लड़कियों को ऑब्जर्वेशन होम से बाहर क्यों भेजना? कहा- शिक्षा और भविष्य पर न पड़े असर

Update: 2025-07-02 05:36 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने हाल ही में स्वत: संज्ञान लेते हुए उस समस्या पर विचार किया, जिसमें अवलोकन गृह (ऑब्जर्वेशन होम) में रहने वाली बालिकाओं को 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद अन्य जिलों में स्थानांतरित कर दिया जाता है।

जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस संजय देशमुख की खंडपीठ ने कहा कि यद्यपि यह तय करना बाल कल्याण समिति (CWC) का कार्य है कि कोई बच्चा देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता में है या नहीं, परंतु बालिग होने पर लड़कियों की शिक्षा अन्य जिलों में स्थानांतरण के कारण प्रभावित नहीं होनी चाहिए।

कोर्ट ने 25 जून, 2025 को दिए आदेश में कहा,

“हम जानते हैं कि अवलोकन गृह में शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है, लेकिन अगर शिक्षा दी जानी है, जो कि हर नागरिक का अधिकार है, तो यह देखना आवश्यक है कि 18 वर्ष की उम्र तक जिस स्थान पर लड़की पली-बढ़ी, वहां से उसे स्थानांतरित करना उसके हित में है या नहीं। ऐसी लड़कियों की मानसिक स्थिति का भी ध्यान रखना जरूरी है। प्रारंभिक दृष्टया हमें लगता है कि ऐसी बालिग लड़की की शिक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।”

कोर्ट ने मीडिया रिपोर्ट का संज्ञान लिया, जिसमें बताया गया कि औरंगाबाद के अवलोकन गृह में लगभग 300 लड़कियां रह रही हैं। बालिग होने पर उन्हें मुंबई या नासिक जैसे शहरों में भेज दिया जाता है, जिससे वे फिर से 'अनाथ' जैसी स्थिति में पहुंच जाती हैं।

कोर्ट ने एडवोकेट सत्यजीत बोरा को एमिक्स क्यूरी नियुक्त करते हुए विस्तृत याचिका तैयार करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा कि विभिन्न विभागों और CWC से आधारभूत जानकारी लेकर 11 जुलाई, 2025 याचिका दायर की जाए।

कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास विभाग और अन्य संबंधित विभागों को निर्देश दिया कि वे एमिक्स क्यूरी को आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराएं। रजिस्ट्रार (न्यायिक) को आदेश दिया गया कि इस आदेश के आधार पर स्वत: संज्ञान जनहित याचिका पंजीकृत की जाए।


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