सिटिंग जज पर 'स्कैंडलस' टिप्पणियां करने के लिए एडवोकेट निलेश ओझा के खिलाफ होगी अतिरिक्त आपराधिक अवमानना कार्यवाही

Update: 2025-09-18 10:16 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को एडवोकेट निलेश ओझा के खिलाफ स्वतः संज्ञान आपराधिक अवमानना की एक और कार्यवाही शुरू की। अदालत ने पाया कि ओझा ने सिटिंग जज के खिलाफ स्कैंडलस और अपमानजनक आरोप” लगाए, जबकि वे खुद पर लंबित आपराधिक अवमानना मामले में अपना बचाव कर रहे थे।

इस वर्ष अप्रैल में हाईकोर्ट ने ओझा के खिलाफ स्वतः संज्ञान अवमानना कार्यवाही शुरू की थी, क्योंकि उन्होंने जस्टिस रेवती मोहिता-डेरे और तत्कालीन चीफ जस्टिस देवेंद्र उपाध्याय (वर्तमान में दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस) के खिलाफ मानहानिकारक और अपमानजनक आरोप लगाए थे। उस कार्यवाही में बचाव करते हुए ओझा ने अंतरिम आवेदन दायर किया और जस्टिस मोहित-डेरे को प्रतिवादी बनाने की मांग की। आवेदन में उन्होंने जज पर पक्षपात जालसाजी, रिकॉर्ड से छेड़छाड़ जैसे गंभीर आरोप भी लगाए।

चीफ जस्टिस श्री चंद्रशेखर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ (जिसमें जस्टिस महेश सोनक, जस्टिस रवींद्र घुगे, जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस बर्गेस कोलाबावाला भी शामिल हैं) ने कहा कि ओझा का यह आवेदन अदालत और जज की प्रतिष्ठा पर हमला है जिसका उद्देश्य लोगों के मन में अविश्वास पैदा करना है।

पीठ ने कहा,

“यह केवल अपमानजनक भाषा का प्रयोग नहीं है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में अविश्वास पैदा करने और न्याय के प्रशासन में बाधा डालने का प्रयास है। यह हमला 'एक्स' (जज) की ईमानदारी और निष्पक्षता पर सीधा आघात है।”

अदालत ने इस बात पर भी कड़ी आपत्ति जताई कि आवेदन में जस्टिस मोहित-डेरे से तत्काल न्यायिक कार्य वापस लेने की प्रार्थना की गई।

पीठ ने कहा कि इस तरह के आरोप न केवल न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं, बल्कि न्यायपालिका में जनता के विश्वास को भी कमजोर करते हैं।

पीठ ने कहा,

“हर व्यक्ति को अपनी बात रखने का अधिकार है, परंतु वकील होने के नाते भाषा पर संयम आवश्यक है। जब किसी वकील का आचरण न्यायिक प्रक्रिया को अपमानित करता है तो यह आपराधिक अवमानना की श्रेणी में आता है।”

पीठ ने यह भी माना कि ओझा के आचरण को निष्पक्ष आलोचना का अधिकार नहीं कहा जा सकता।

सुनवाई के दौरान कई एडवोकेट विजय कुरले, ईश्वरलाल अग्रवाल, पार्थो सरकार, अभिषेक मिश्रा, अनुश्का सोनवाने, देवकृष्ण भाम्बरी, शिवम गुप्ता, विकास पवार सहित अन्य  ने ओझा का पक्ष रखने के लिए उपस्थिति दर्ज कराई जबकि ओझा पार्टी-इन-पर्सन के रूप में पेश हो रहे थे।

पीठ ने इसे पेशेवर दुराचार करार दिया, क्योंकि एडवोकेट किसी पार्टी-इन-पर्सन के वकील के रूप में पेश नहीं हो सकते। हालांकि, फिलहाल अदालत ने उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू नहीं की और उन्हें केवल चेतावनी देकर छोड़ दिया।

अंत में अदालत ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि ओझा के खिलाफ एक नया स्वतः संज्ञान आपराधिक अवमानना मामला दर्ज किया जाए और उन्हें कोर्ट की अवमानना के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए।

ओझा को 16 अक्टूबर तक इस नोटिस का जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया।

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