बच्चे की देखभाल के लिए नौकरानी रखने वाली माँ को बच्चे की कस्टडी से इनकार करने का आधार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि बच्चे की देखभाल के लिए नौकरानी रखने वाली माँ को बच्चे की कस्टडी से इनकार करने का आधार नहीं है।
एकल जज जस्टिस आरएम जोशी ने कहा कि बच्चों की देखभाल के लिए नौकरानी रखना कोई असामान्य प्रथा नहीं है।
जस्टिस जोशी ने आदेश में कहा,
"पिछले करीब 8 महीने से बच्चा मां के पास है। ऐसा कोई भी तथ्य रिकॉर्ड में नहीं लाया गया, जिससे यह संकेत मिले कि बच्चे की मां के पास हिरासत में रहना उसके हित में नहीं है। याचिकाकर्ता (पिता) की ओर से यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी (मां) व्यक्तिगत रूप से बच्चे की देखभाल नहीं कर रही है। उसने इस उद्देश्य के लिए नौकरानी को नियुक्त किया और वह इस आधार पर उससे भरण-पोषण का दावा करती है। भले ही यह स्वीकार कर लिया जाए कि मां ने नौकरानी रखी है लेकिन घर में छोटे बच्चे के होने पर नौकरानी रखना असामान्य नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में यदि उक्त तथ्य को सत्य मान लिया जाए तो भी यह विवादित आदेश में हस्तक्षेप करने का आधार नहीं बनेगा।"
18 फरवरी, 2025 को सुनाया गया आदेश हाल ही में न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
न्यायाधीश ने तत्काल आदेश द्वारा एक पिता द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें फैमिली कोर्ट के 30 जनवरी, 2024 के आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें दंपति के बेटे की अंतरिम हिरासत मां को दी गई। पिता ने उक्त आदेश को जस्टिस जोशी की पीठ के समक्ष चुनौती दी।
पिता ने तर्क दिया कि मां अवसाद में है। इसलिए वह बच्चे की देखभाल करने में सक्षम नहीं है। इस प्रकार, बच्चे के कल्याण से समझौता किया जा रहा है। हालांकि जस्टिस जोशी ने विशेषज्ञ डॉक्टरों की रिपोर्ट पर गौर किया, जिन्होंने (एचसी के आदेश पर) मां की जांच की और उसे सामान्य पाया।
जस्टिस जोशी को पिता द्वारा किए गए दावों को प्रमाणित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं मिली।
इसके अलावा जस्टिस जोशी ने फैमिली कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से भी इनकार किया। खासकर उस हिस्से में, जिसमें अदालत ने पिता पर मां के लिए 'अनुचित' भाषा का उपयोग करने के लिए 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।
फैमिली कोर्ट के समक्ष दायर याचिकाओं में पिता ने बच्चे को दूध पिलाने में मां की असमर्थता पर कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं।
पिता द्वारा दलीलों में इस्तेमाल की गई भाषा पर आपत्ति जताते हुए फैमिली कोर्ट ने टिप्पणी की,
"कानूनी दलीलों में अनुचित और अपमानजनक वाक्यांशों/शब्दों का उपयोग व्यक्तियों की गरिमा को उनके जेंडर के आधार पर कम करता है। ऐसी दलीलों में अपेक्षित भाषा की अनुमेय सीमाओं से परे है। इस प्रकार, ऐसी अनुचित भाषा का उपयोग करने के लिए पिता पर कुछ राशि का जुर्माना लगाया जाना चाहिए।"
जस्टिस जोशी ने फैमिली कोर्ट के फैसले में दर्ज आपत्तिजनक टिप्पणियों को पढ़ने के बाद कहा कि अदालत ने इतनी मामूली राशि लगाने में 'उदारता' दिखाई।
जस्टिस जोशी ने आदेश दिया,
"इस न्यायालय को लगता है कि फैमिली कोर्ट जज ने केवल 5,000 रुपये का जुर्माना लगाने में उदारता दिखाई। माँ द्वारा आदेश के उक्त हिस्से को चुनौती न दिए जाने के कारण यह न्यायालय उक्त जुर्माना बढ़ाना नहीं चाहता। इतना कहना ही पर्याप्त है कि विवादित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण या औचित्य नहीं है। इसलिए याचिका खारिज की जाती है।”
केस टाइटल: एसएसके बनाम एएसके (रिट याचिका 1398/2024)