बाइबल बांटना, धर्म का प्रचार करना अपराध नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धर्मांतरण मामले में हद पार करने पर यूपी पुलिस को फटकारा
एक कड़े आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सिर्फ़ बाइबल बांटना या किसी धर्म का प्रचार करना उत्तर प्रदेश गैर-कानूनी धर्मांतरण निषेध अधिनियम 2021 के तहत अपराध नहीं है।
जस्टिस अब्दुल मोइन और जस्टिस बबीता रानी की बेंच ने यूपी पुलिस को भी फटकारा, जिसे उन्होंने FIR दर्ज होने के तुरंत बाद आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए हद पार करना कहा, जबकि उस समय जबरन धर्मांतरण के दावों को साबित करने के लिए कोई पीड़ित सामने नहीं आया था।
हाईकोर्ट ने ये टिप्पणियां आरोपी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कीं, जिसमें 2021 के अधिनियम के तहत उनके खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने की मांग की गई थी।
संक्षेप में मामला
FIR मनोज कुमार सिंह नाम के एक व्यक्ति ने दर्ज कराई थी, जिसने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं ने दलितों और समाज के गरीब तबके के लोगों को धर्मांतरण कराने के लिए प्रार्थना सभा आयोजित की थी।
शिकायतकर्ता ने बताया कि याचिकाकर्ताओं-आरोपियों के घर पहुंचने पर उसने बरामदे में एक LED स्क्रीन लगी देखी, जहां आरोपी ईसाई धर्म के सिद्धांतों का प्रचार कर रहे थे और बाइबल बांट रहे थे।
FIR रद्द करने की याचिका में कोर्ट ने 2021 के अधिनियम की धारा 3 का हवाला दिया, जो गलत बयानी बल, अनुचित प्रभाव या प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण पर रोक लगाती है। बेंच ने कहा कि इस प्रावधान को लागू करने के लिए सबसे ज़रूरी शर्त एक ऐसे 'व्यक्ति' की उपस्थिति है जो यह आरोप लगाए कि उसे धर्मांतरण कराया जा रहा है।
कोर्ट ने आगे कहा कि इस मामले में 17 अगस्त, 2025 को जब FIR दर्ज की गई तब कोई भी पीड़ित सामने नहीं आया था और FIR में सिर्फ़ एक LED स्क्रीन और बाइबल बरामद होने का ज़िक्र था।
बेंच ने कहा,
"FIR को पढ़ने से यह सामने नहीं आता है कि FIR दर्ज करते समय कोई भी व्यक्ति सामने आया हो, जिसने यह बताया हो कि उसे किसी दूसरे धर्म में धर्मांतरण कराया गया।"
हालांकि पीड़ितों में से एक ने अपने शुरुआती बयान (4 सितंबर) में धर्मांतरण के बारे में कुछ भी नहीं बताया लेकिन 25 अक्टूबर को FIR दर्ज होने के लगभग दो महीने बाद उसने कहा कि उसे धर्म बदलने के लिए प्रलोभन दिया गया। बेंच ने टिप्पणी की कि यह देखते हुए कि 2021 का एक्ट एक स्पेशल एक्ट है, अधिकारियों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जिस तारीख को यह घटना हुई (17 अगस्त) उस दिन ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे यह पता चले कि उक्त अपराध किया गया।
इस देरी पर ध्यान देते हुए बेंच ने कहा,
"यह पहली नज़र में साफ है कि अधिकारियों ने याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार करने के लिए बहुत ज़्यादा कोशिश की भले ही यह पता नहीं है कि शिकायतकर्ता को किसी अपराध के बारे में जानकारी कैसे मिली ये सभी अजीब तथ्य हैं जिनकी व्याख्या करने की ज़रूरत है।"
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले राजेंद्र बिहारी लाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2025 LiveLaw (SC) 1021 का हवाला दिया बेंच ने दोहराया कि चूंकि 2021 का एक्ट स्पेशल एक्ट है। इसलिए अधिकारी अनुमानों पर काम करने के बजाय इसके प्रावधानों का सख्ती से पालन करने के लिए बाध्य हैं।
कोर्ट ने शिकायतकर्ता के आचरण पर भी सवाल उठाया और उसे नोटिस जारी कर याचिकाकर्ताओं के घर पर छापा मारने के उसके अधिकार के बारे में जवाबी हलफनामे में स्पष्टीकरण मांगा।
कोर्ट ने निम्नलिखित सवाल पूछे:-
1. उसे कथित अपराध के बारे में जानकारी कहां से मिली
2. उसने आरोपी के घर तक अपने साथ जाने के लिए भीड़ कैसे इकट्ठा की
3. अगर वह किसी तीसरे व्यक्ति के घर में घुस जाता है तो उसे रोकने की कोशिश करके याचिकाकर्ताओं ने कौन-सा अपराध किया
बेंच ने आगे पूछा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 352 (शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान) और धारा 351(3) (आपराधिक धमकी) के तहत आरोप कैसे लगाए जा सकते हैं, जबकि वे संभावित रूप से अपनी संपत्ति को घुसपैठ से बचा रहे थे।
मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी।