इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री को लोकपाल से बाहर रखने के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

Update: 2025-09-16 07:40 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश लोकायुक्त और उप-लोकायुक्त अधिनियम 1975 के उन प्रावधानों को चुनौती दी थी जो मुख्यमंत्री को लोकायुक्त के दायरे से बाहर रखते हैं।

अमिताभ ठाकुर ने इस प्रावधान [अधिनियम की धारा 2(g)] को बेहद मनमाना, अनुचित, अर्थहीन और खतरनाक" करार दिया, क्योंकि यह मुख्यमंत्री को किसी भी आरोप और शिकायत से बचाता है। ठाकुर ने अपनी याचिका में कहा कि यह प्रावधान मुख्यमंत्री को अपने पद का दुरुपयोग कर किसी भी प्रकार का लाभ उठाने या किसी अन्य व्यक्ति को अनुचित नुकसान पहुंचाने से बचाता है।

जस्टिस संगीता चंद्र और जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया।

याचिका में मुख्य रूप से यह मांग की गई थी कि अधिनियम की धारा 2(g) में दिए गए शब्द मुख्यमंत्री को असंवैधानिक घोषित किया जाए। धारा 2(g) मंत्री को परिभाषित करती है, जिसमें मुख्यमंत्री को छोड़कर मंत्रिपरिषद के सदस्य शामिल होते हैं।

ठाकुर ने तर्क दिया कि एक लोक सेवक और संवैधानिक प्राधिकारी को भ्रष्टाचार, अवैधता, अनुचितता और कुप्रशासन के कृत्यों के लिए उच्च-स्तरीय निगरानी संस्था के दायरे से बाहर रखने का कोई कारण नहीं हो सकता है। याचिका में यह भी कहा गया कि दुनिया में ऐसा कोई नियम नहीं है कि मुख्यमंत्री भ्रष्ट नहीं हो सकते और यह भी बताया गया कि देश के कई मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में गिरफ्तार और जेल जा चुके हैं।

इसके विपरीत याचिका में तर्क दिया गया कि लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, प्रधानमंत्री को जांच के दायरे से बाहर नहीं रखता है। उस अधिनियम की धारा 14 स्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में लाती है।

याचिका में अधिनियम की धारा 5(1) के पहले परंतुक को भी चुनौती दी गई, जिसे 2012 के संशोधन द्वारा जोड़ा गया था। यह परंतुक कहता है कि लोकायुक्त या उप-लोकायुक्त, अपने कार्यकाल की समाप्ति के बावजूद, तब तक पद पर बने रहेंगे, जब तक कि उनका उत्तराधिकारी कार्यभार ग्रहण नहीं कर लेता। ठाकुर ने इस प्रावधान को भी "पूरी तरह से मनमाना और अर्थहीन बताया था।

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