राज्य किसी भी आधार पर विचाराधीन कैदियों को देखभाल और पर्याप्त मेडिकल सुविधाएं देने से इनकार नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि राज्य किसी भी आधार पर हिरासत में लिए गए आरोपी को पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं देने से इनकार नहीं कर सकता।
जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि बीमारी के दौरान विचाराधीन कैदी को देखभाल और मेडिकल सुविधाएं प्रदान करना भी राज्य की जिम्मेदारी है, जिससे वह बच नहीं सकता।
एकल न्यायाधीश ने राज्य अधिकारियों द्वारा विचाराधीन कैदी (न्यायालय के समक्ष आवेदक) को मेडिकल सहायता/शल्य मेडिकल सहायता प्रदान करने से इनकार करने पर आपत्ति जताते हुए ये टिप्पणियां कीं इस आधार पर कि संबंधित समय पर लोकसभा चुनाव 2024 के लिए आचार संहिता लागू थी।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है। आरोपी राज्य की निगरानी में हिरासत में है। राज्य किसी भी आधार पर उसे पर्याप्त मेडिकल सुविधा प्रदान करने से इनकार नहीं कर सकता। वर्तमान मामले में न्यायालय की राय में, जेल अधीक्षक, जिला जेल, देवरिया द्वारा लिया गया आधार पूरी तरह से अनुचित है ।”
अपने आदेश में न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट, देवरिया और पुलिस अधीक्षक, देवरिया को व्यक्तिगत रूप से मामले को देखने और अपने हलफनामे दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें न्यायालय को बताया जाए कि आवेदक (विचाराधीन कैदी) की सर्जरी के लिए पर्याप्त व्यवस्था क्यों नहीं की गई।
न्यायालय ने अधिकारियों को यह भी बताने का निर्देश दिया कि किन परिस्थितियों में आवेदक को सर्जरी के लिए जाने से मना किया गया। इसके लिए कौन जिम्मेदार था, क्योंकि अगर सर्जरी की राय थी तो यह अधिकारियों की मर्जी पर इंतजार नहीं किया जा सकता था बल्कि डॉक्टरों की राय पर किया जाना था।
आवेदक के वकील ने अदालत को बताया कि चूंकि आवेदक-आरोपी जेल में अस्वस्थ था, इसलिए 16 अप्रैल, 2024 को उसके आवेदन पर एडिशनल सेशन जज, देवरिया ने उसे उचित मेडिकल उपचार प्रदान करने का निर्देश दिया।
जेल अधीक्षक ने लोकसभा चुनाव की आचार संहिता का हवाला देते हुए उसे उपचार प्रदान करने से इनकार किया। यह भी कहा गया कि एमसीसी हटने के बाद मेडिकल उपचार प्रदान किया जाएगा।
केस टाइटल - कयामुद्दीन बनाम यूपी राज्य