इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अधिकारी से टीचर की मौत के एक साल बाद उसे नौकरी से निकालने का आदेश देने पर स्पष्टीकरण मांगा

Update: 2025-12-06 10:49 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य शिक्षा अधिकारियों के रवैये पर हैरानी जताई, जिन्होंने COVID-19 महामारी के कारण एक असिस्टेंट टीचर की मौत के एक साल से ज़्यादा समय बाद उसके खिलाफ बर्खास्तगी की कार्रवाई शुरू की।

इस बात पर ज़ोर देते हुए कि मरे हुए व्यक्ति के खिलाफ जांच शुरू नहीं की जा सकती, जस्टिस प्रकाश पाडिया की बेंच ने यूपी के डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन (बेसिक) को एक पर्सनल एफिडेविट दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें यह बताया जाए कि उन्होंने कानून के किन प्रावधानों के तहत एक मृत कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का निर्देश जारी किया।

संक्षेप में मामला

स्वर्गीय मुकुल सक्सेना की विधवा प्रीति सक्सेना ने रिट याचिका दायर की थी, जो प्राइमरी स्कूल में असिस्टेंट टीचर के तौर पर काम करते थे और 24 अक्टूबर 1996 को डाइंग-इन-हार्नेस नियमों के तहत ड्यूटी जॉइन की थी।

उन्होंने मई, 2021 में COVID-19 के कारण अपनी मृत्यु तक काम करना जारी रखा। उनकी मृत्यु के बाद याचिकाकर्ता जो कानूनी तौर पर उनकी पत्नी थीं को फैमिली पेंशन मिलने लगी, जो नवंबर 2022 तक जारी रही।

फर्रुखाबाद के डिस्ट्रिक्ट बेसिक एजुकेशन ऑफिसर द्वारा फाइनेंस और अकाउंट ऑफिसर को भेजे गए एक पत्र के कारण पेंशन अचानक रोक दी गई।

इस पत्र में डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन (बेसिक) द्वारा 18 जुलाई, 2022 को जारी एक अन्य पत्र का हवाला दिया गया, जिसमें मृत कर्मचारी की सेवाओं को समाप्त करने का निर्देश दिया गया।

नतीजतन दिसंबर 2022 में एडिशनल डायरेक्टर ट्रेजरी और पेंशन कानपुर मंडल द्वारा याचिकाकर्ता की फैमिली पेंशन रोकने का आदेश पारित किया गया।

इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए विधवा ने हाईकोर्ट का रुख किया जहां बेसिक एजुकेशन ऑफिसर के वकील ने रिकॉर्ड पर निर्देश देते हुए दावा किया कि उनके पति ने जाली दस्तावेज़ जमा करके अपनी नियुक्ति प्राप्त की थी और उनकी नियुक्ति को शुरुआती नियुक्ति की तारीख से ही अमान्य माना गया।

हालांकि, जस्टिस पाडिया ने विभाग के रुख को दृढ़ता से खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पूरे निर्देशों में ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया, जिससे यह पता चले कि इन कार्रवाइयों से पहले किसी भी अथॉरिटी द्वारा नियुक्ति को अमान्य घोषित करने वाला कोई आदेश पारित किया गया। कोर्ट ने कहा कि डायरेक्टर ऑफ़ एजुकेशन (बेसिक) को ही पता होगा कि उन्होंने एक मरे हुए इंसान को नौकरी से निकालने की कार्यवाही क्यों शुरू की, जबकि यह तय कानून है कि मरे हुए इंसान के खिलाफ कोई जांच शुरू नहीं की जा सकती।

अपनी हैरानी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि वह बहुत हैरान और अचंभित है कि किन हालात में जुलाई 2022 में कर्मचारी के खिलाफ यह लेटर लिखा गया जबकि वह मई, 2021 में ही मर चुका था।

हाईकोर्ट ने डायरेक्टर ऑफ़ एजुकेशन (बेसिक) को व्यक्तिगत एफिडेविट फाइल करने और अपने काम का कारण बताने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने आदेश दिया कि एफिडेविट एक हफ्ते के अंदर फाइल किया जाए ऐसा न करने पर डायरेक्टर मामले में अगली तारीख पर इस कोर्ट के सामने मौजूद रहेंगे।

मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी।

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