खाताधारक की मृत्यु के बाद नामांकित व्यक्ति बैंक जमाराशि पाने का हकदार, लेकिन धन उत्तराधिकार कानूनों के अधीन होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि खाताधारक की मृत्यु के बाद नामांकित व्यक्ति को बैंक से धन प्राप्त करने का अधिकार है लेकिन प्राप्त धन उत्तराधिकार कानूनों के अधीन होगा। मृतक के उत्तराधिकारियों को कानून के अनुसार उक्त राशि पर अधिकार होगा।
जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने मनोज कुमार शर्मा द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की, जिन्होंने दावा किया कि नामांकित व्यक्ति के रूप में वह बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 45ZA [जमाकर्ताओं के धन के भुगतान के लिए नामांकन] के अनुसार अपनी दिवंगत मां की सावधि जमा रसीदों (FDR) से धन प्राप्त करने का हकदार था।
खंडपीठ ने कमांडर के मामले में समन्वय पीठ के फैसले का हवाला दिया।
विनीत कुमार शर्मा बनाम भारत संघ और 3 अन्य 2024, जिसमें हाईकोर्ट ने राम चंद्र तलवार और अन्य बनाम देवेंद्र कुमार तलवार और अन्य 2010 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।
संदर्भ के लिए राम चंद्र तलवार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 1949 अधिनियम की धारा 45-ZA (2) के आधार पर नामित व्यक्ति द्वारा प्राप्त की जाने वाली सभी धनराशि, इसलिए मृतक जमाकर्ता की संपत्ति का हिस्सा बनेगी और उत्तराधिकार के नियम के अनुसार ट्रांसफर होगी, जिसके अनुसार जमाकर्ता शासित हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,
“धारा 45-ZA (2) केवल नामांकित व्यक्ति को जमाकर्ता की मृत्यु के बाद उसके स्थान पर रखती है। उसे खाते में पड़े धन को प्राप्त करने का विशेष अधिकार देती है। यह उसे जमाकर्ता के खाते के संबंध में जमाकर्ता के सभी अधिकार प्रदान करती है। लेकिन यह किसी भी तरह से नामित व्यक्ति को खाते में पड़े पैसे का मालिक नहीं बनाता।”
विनीत कुमार शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर भरोसा करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि नामित व्यक्ति अकेले ही बैंक से पैसे प्राप्त करने का हकदार है चाहे वह वसीयतनामा हो या बैंक से पैसे प्राप्त करने का अधिकार उस पैसे को पाने के अधिकार से अलग है।
याचिकाकर्ता ने अपनी मां (जिनकी मृत्यु 8 फरवरी, 2020 को हुई) के FDR खातों (बैंक ऑफ बड़ौदा में बनाए गए) में जमा राशि को नामित व्यक्ति और कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में अपने पक्ष में जारी करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें दावा किया गया कि वह 1949 अधिनियम की धारा 45ZA के अनुसार पैसे प्राप्त करने का हकदार है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि सिविल जज (सीनियर डिवीजन)/FTC मुरादाबाद के समक्ष उनके उत्तराधिकार के मुकदमे को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि याचिकाकर्ता की मां की कथित वसीयत को रद्द करने के लिए एक और मुकदमा लंबित है।
दूसरी तरफ निजी प्रतिवादियों और राज्य की ओर से पेश हुए वकील ने प्रस्तुत किया कि 1949 अधिनियम की धारा 45ZA हालांकि नामित व्यक्ति को बैंक से धन प्राप्त करने का अधिकार देती है लेकिन यह प्रावधान उत्तराधिकार के कानूनों को रद्द नहीं कर सकता।
यह तर्क दिया गया कि भले ही याचिकाकर्ता को धन दिया जाना आवश्यक हो लेकिन याचिकाकर्ता को इसे मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए ट्रस्ट में रखना होगा।
इन दलीलों के मद्देनजर और सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसलों पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को बैंक से धन प्राप्त करने का अधिकार है, क्योंकि वह नामित व्यक्ति है।
कोर्ट ने कहा कि उसे प्राप्त धन उत्तराधिकार कानूनों के अधीन होगा और मृतक के उत्तराधिकारियों को उक्त राशि पर अधिकार होगा।
याचिकाकर्ता की ओर से वकील द्वारा दिए गए इस वचन पर कि वह पैसे को ट्रस्ट में रखेगा और जब भी कानून की अदालतों द्वारा फैसला किया जाएगा तो कानूनी उत्तराधिकारियों को भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा। अदालत ने बैंक ऑफ बड़ौदा को तीन सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता के पक्ष में एफडीआर में पड़ी राशि जारी करने का निर्देश दिया।
इसके बदले में याचिकाकर्ता को बैंक ऑफ बड़ौदा के समक्ष एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया गया, जिसमें कहा गया कि उसे जो पैसा मिल रहा है, वह ट्रस्ट में रखा गया। वह कानूनी उत्तराधिकारियों को तय होने पर भुगतान करने का वचन देता है।
इसके साथ ही याचिका का निपटारा कर दिया गया।
केस टाइटल - मनोज कुमार शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य