स्त्रीधन की वापसी का निर्णय हिंदू विवाह अधिनियम की कार्यवाही में ही होना चाहिए, अलग आवेदन पर नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-05-31 11:54 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि पति-पत्नी की संपत्तियों के वितरण, जिसमें 'स्त्रीधन' की वापसी भी शामिल है, उसका निर्धारण हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की कार्यवाही के अंतर्गत ही किया जाना चाहिए, न कि धारा 27 के तहत अलग से दिए गए आवेदन पर।

जस्टिस अरिंदम सिन्हा और जस्टिस अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने कहा,

'स्त्रीधन' की वापसी एक मुद्दा होना चाहिए, जिसे अधिनियम के तहत चल रही कार्यवाही के ट्रायल में तय किया जाए, न कि धारा 27 के तहत स्वतंत्र रूप से दिए गए आवेदन पर।"

फैमिली कोर्ट ने अपीलकर्ता-पति को निर्देश दिया था कि वह उत्तरदायी-पत्नी को 'स्त्रीधन' की वापसी के रूप में 10,54,364 अदा करे। दोनों पक्षकारों के बीच विवाह 1 मई, 2023 को भंग कर दिया गया था। पत्नी द्वारा अंतरिम भरण-पोषण के लिए दायर याचिका में पति ने कुल 7 लाख का भुगतान किया था।

अपीलकर्ता पति के वकील ने तर्क दिया कि पति-पत्नी द्वारा स्वामित्व वाली संपत्तियों का वितरण केवल तलाक की डिक्री में ही किया जा सकता है और इस डिक्री में 'स्त्रीधन' को लेकर कोई निर्देश नहीं दिया गया था।

इसके लिए उन्होंने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के निर्णय बबिता @ गायत्री बनाम मोडप्रसाद @ पिंटू पर भरोसा जताया, जिसमें कहा गया था,

"जब तक अधिनियम के तहत कोई वैवाहिक कार्यवाही निर्णीत नहीं हो जाती, तब तक धारा 27 के अंतर्गत स्वतंत्र आवेदन स्वीकार्य नहीं है। यह प्रावधान मुकदमों की बहुलता से बचने और उसी कार्यवाही के अंतर्गत 'स्त्रीधन' की वापसी की याचिका की अनुमति देने के लिए है, जिसमें वैवाहिक विवाद कोर्ट के समक्ष लाया गया।"

उत्तरदायी पत्नी की ओर से दलील दी गई कि अपीलकर्ता पहले समीक्षा याचिका में असफल रहे और अब अपील कर रहे हैं जो स्वीकार्य नहीं है। यह भी कहा गया कि पत्नी अब निष्पादन कार्यवाही चला रही हैं।

FIR के संदर्भ में, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पति ने जबरदस्ती गहने ले लिए कोर्ट ने पाया कि केवल साजिश के आरोप थे और पत्नी ने अपनी जिरह में यह कहा था कि घटना के समय पति मौजूद नहीं थे।

कोर्ट ने यह भी कहा कि गहनों की रसीदों की फोटोकॉपी, जो पत्नी के माता-पिता ने दी थीं, उसको पति प्रमाणित नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने न तो मूल रसीद देखी और न ही लेन-देन के गवाह थे।

कोर्ट ने टिप्पणी की,

"एक दस्तावेज केवल उसके निर्माता द्वारा ही प्रमाणित किया जा सकता है, या वह व्यक्ति जो निर्माता को दस्तावेज बनाते और सौंपते हुए देखे।"

इस पर कोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट ने बिना उचित आधार के आरोपों को स्वीकार कर लिया।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से सहमति जताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा,

"धारा 25 केवल उस स्थिति में लागू होती है जब तलाक की डिक्री के बाद भरण-पोषण का निर्देश मांगा जाए। वहीं धारा 27 के अंतर्गत केवल उसी डिक्री में निर्देश दिए जा सकते हैं, जिसमें विवाह-विच्छेद किया गया हो और संपत्ति को लेकर आदेश जारी किया गया हो। 1 मई, 2023 की डिक्री में ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया गया।"

तदनुसार 10,54,364 के भुगतान का आदेश निरस्त कर दिया गया। चूंकि पत्नी को 7 लाख अंतरिम भरण-पोषण और 2,10,000 आंशिक निष्पादन के रूप में प्राप्त हो चुके थे। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की जीत के साथ निष्पादन कार्यवाही स्वतः समाप्त मानी जाएगी।

केस टाइटल: कृष्ण कुमार गुप्ता बनाम प्रीति गुप्ता

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