BREAKING | संभल मस्जिद विवाद: हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का सर्वे ऑर्डर रखा बरकरार, कहा- हिंदू वादियों का मुकदमा 'वर्जित नहीं'

Update: 2025-05-19 10:11 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद समिति की याचिका खारिज कर दी, जिसमें 19 नवंबर को पारित ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। इस आदेश में एडवोकेट आयुक्त को मस्जिद का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया था, जिसमें दावा किया गया था कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को नष्ट करने के बाद किया गया।

इसके साथ ही जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने ट्रायल कोर्ट का सर्वेक्षण आदेश बरकरार रखा। इसने यह भी कहा कि हिंदू वादियों पर प्रथम दृष्टया कोई प्रतिबंध नहीं है।

ट्रायल कोर्ट का आदेश महंत ऋषिराज गिरि सहित आठ वादियों द्वारा दायर मुकदमे पर पारित किया गया, जिन्होंने दावा किया कि संभल मस्जिद का निर्माण 1526 में वहां मौजूद एक हिंदू मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया गया था।

दूसरी ओर, अपने मुकदमे में हिंदू वादियों ने दावा किया कि विचाराधीन मस्जिद मूल रूप से भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि को समर्पित एक प्राचीन मंदिर (हरि हर मंदिर) का स्थल था। 1526 में मुगल शासक बाबर के आदेश पर मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर मस्जिद में बदल दिया गया था।

अपने मुकदमे में एडवोकेट हरि शंकर जैन और विष्णु शंकर जैन द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए वादियों ने मस्जिद तक पहुंचने के अधिकार का दावा किया।

एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव ने पहले ही ट्रायल कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में सर्वेक्षण रिपोर्ट दाखिल कर दी थी।

पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर प्रभावी रूप से रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जब तक सर्वेक्षण आदेश के खिलाफ मस्जिद समिति की याचिका हाईकोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध नहीं हो जाती, तब तक ट्रायल कोर्ट मामले में आगे नहीं बढ़ेगा।

हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान ASI ने अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा था कि 'जुमा मस्जिद' को केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित किया गया। स्वतंत्रता के बाद प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (AMASR Act) लागू हुआ। इसके प्रावधान अब ऐसे स्मारकों पर लागू होते हैं और आधिकारिक अभिलेखों में कहीं भी मस्जिद को धार्मिक स्थल के रूप में वर्णित नहीं किया गया।

ASI ने आगे तर्क दिया है कि 'शाही मस्जिद' शब्द का समर्थन करने वाला कोई ऐतिहासिक, पुरातात्विक या राजस्व साक्ष्य नहीं है। इसके जवाब में कहा गया कि AMASR Act की धारा 5 के तहत ASI को संरक्षित स्मारकों के संरक्षण के लिए अधिकार प्राप्त करने का अधिकार है। एक्ट की धारा 4 भी केंद्र सरकार को ऐतिहासिक महत्व के किसी भी स्मारक को संरक्षित घोषित करने का अधिकार देती है, जिससे स्वामित्व या नियंत्रण के किसी भी अनधिकृत दावे (मस्जिद समिति के दावों का जिक्र करते हुए) का कोई मतलब नहीं है।

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