शिक्षकों की अनुपस्थिति गरीब स्टूडेंट्स के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन: इलाहाबाद हाईकोर्ट
शिक्षक के कर्तव्य की पवित्रता और प्रत्येक बच्चे के शिक्षा के संवैधानिक अधिकार को रेखांकित करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में ग्रामीण प्राथमिक और जूनियर स्कूलों में शिक्षकों की पूरे स्कूल समय में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम बनाने का आह्वान किया।
जस्टिस प्रवीण कुमार गिरि की पीठ ने कहा कि प्राथमिक संस्थानों में शिक्षकों की अनुपस्थिति निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम 2009 के मूल उद्देश्य को विफल करती है। इस प्रकार गरीब ग्रामीण बच्चों के शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है।
पीठ बांदा जिले के पैलानी स्थित एक संयुक्त विद्यालय की प्रधानाध्यापिका इंद्रा देवी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
उन्होंने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, बांदा द्वारा पारित अपने निलंबन आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था। उन्होंने आदेश रद्द करने और वेतन सहित अपनी बहाली की भी मांग की थी।
उनकी याचिका पर विचार करते हुए कोर्ट ने ग्रामीण विद्यालयों में शिक्षकों की अनुपस्थिति की बार-बार होने वाली समस्या पर गहरी चिंता व्यक्त की।
कोर्ट ने कहा कि प्राथमिक शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की उपस्थिति और अनुपस्थिति से संबंधित मामलों की बाढ़ आ गई।
निलंबन आदेश का हवाला देते हुए जिसमें कहा गया कि बांदा के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दोपहर लगभग 1:30 बजे किए गए औचक निरीक्षण के दौरान याचिकाकर्ता विद्यालय में उपस्थित नहीं पाई गई थी, न्यायालय ने ऐसी चूकों की गंभीरता पर प्रकाश डाला।
जस्टिस गिरि ने टिप्पणी की,
"विद्यालय से शिक्षकों की अनुपस्थिति के कारण स्टूडेंट्स की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जैसे कि शैक्षणिक उपलब्धि में कमी और यह असमान शिक्षण अवसर पैदा करता है। खासकर वंचित पृष्ठभूमि के स्टूडेंट्स के लिए जो निजी ट्यूटर या कोचिंग का खर्च नहीं उठा सकते।"
पीठ ने यह भी कहा कि प्राथमिक शिक्षण संस्थान में पढ़ने वाले किसी गरीब ग्रामीण के बच्चे के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किसी भी व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता यहां तक कि शिक्षक द्वारा भी, जिसे भारत के संविधान के तहत सरकारी कर्मचारी/राज्य माना जाता है।
अपने छह पृष्ठों के आदेश में जस्टिस गिरि ने समाज के निर्माण में शिक्षक की महान भूमिका पर ज़ोर देने के लिए प्राचीन भारतीय ज्ञान का हवाला दिया।
उन्होंने शास्त्रों और साहित्य से उद्धरण देते हुए कहा,
"गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुदेव नमः॥"
उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा एक आजीवन प्रक्रिया है। इसके लिए शिक्षकों के चौबीस घंटे समर्पण की आवश्यकता होती है जैसा कि गुरुकुल में था।
पीठ ने आगे कहा,
"शिक्षक का पवित्र पद मिलने के बाद यदि कोई शिक्षक समय पर संस्थान में आकर छात्रों को पढ़ाता है और अवधि समाप्त होने के बाद संस्थान छोड़ देता है तो शायद कोई समस्या न हो।"
सिंगल जज ने आगे कहा कि राज्य सरकार ने डिजिटल उपस्थिति प्रणाली शुरू की लेकिन यह जमीनी स्तर पर लागू नहीं है।
इस पृष्ठभूमि में यह देखते हुए कि प्रशासनिक प्रयासों को दोषी शिक्षकों के विरुद्ध प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई से हटाकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय उपायों की ओर स्थानांतरित किया जाना चाहिए, कोर्ट ने बेसिक शिक्षा अधिकारियों सहित राज्य सरकार के शीर्ष अधिकारियों को निर्देश दिया।
कोर्ट ने निर्देश दिया,
"ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब ग्रामीणों के बच्चों के लिए शिक्षण हेतु निर्धारित दिन की अवधि के आरंभ से लेकर अंत तक संस्थान में शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कुछ नियम और विनियम बनाए जाएं।"
न्यायालय ने मुख्य सरकारी वकील और अन्य सरकारी अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अगली सुनवाई (30 अक्टूबर) से पहले स्कूलों में शिक्षकों और कर्मचारियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक निर्देश प्राप्त करें और सामग्री प्रस्तुत करें।