ग्राम सभा की भूमि पर अवैध अतिक्रमण के विरुद्ध सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम के तहत कार्यवाही स्वीकार्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया कि ग्राम सभा की भूमि पर अवैध अतिक्रमण के विरुद्ध सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम 1984 के तहत कार्यवाही स्वीकार्य नहीं है।
सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम 1984 के तहत कार्यवाही को रद्द करते हुए जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव ने मुंशी लाल एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में अपने समन्वय पीठ के पहले के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि जहां तक ग्राम सभा की भूमि पर अवैध अतिक्रमण, क्षति या अतिक्रमण के लिए आपराधिक कार्यवाही का सवाल है तो वह की जा सकती है, लेकिन यह विवादित भूमि पर पक्षों के अधिकारों के अधिनिर्णय के अधीन होगी, क्योंकि उक्त निर्धारण केवल राजस्व न्यायालय द्वारा ही किया जा सकता है।
लेखपाल ने आवेदक के खिलाफ सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम 1984 की धारा 3/5 के तहत एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि सर्वेक्षण में पाया गया कि ग्राम सभा की भूमि जो एक सार्वजनिक संपत्ति है, पर आस-पास के किसानों ने अतिक्रमण कर लिया। आरोप लगाया गया कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। इसके बाद आरोप पत्र दाखिल किया गया और समन जारी किए गए, जिन्हें आवेदक ने हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी।
आवेदक के वकील ने समन आदेश जारी करते समय मजिस्ट्रेट द्वारा विवेक का प्रयोग न करने का आग्रह किया। यह तर्क दिया गया कि अतिक्रमण के संबंध में मुद्दा बेदखली की कार्यवाही में राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 के तहत तय किया जाना था। मुंशी लाल और अन्य के फैसले पर गौर करते हुए न्यायालय ने कहा कि 1984 के अधिनियम का उद्देश्य दंगों और सार्वजनिक हंगामे के दौरान होने वाली तोड़फोड़ और क्षति सहित सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की गतिविधियों पर अंकुश लगाना था।
यह माना गया कि आवेदक के खिलाफ 1984 अधिनियम के तहत प्रक्रिया जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग था और इसे रद्द कर दिया गया।
केस टाइटल: ब्रह्मदत्त यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य