राज्य प्राधिकारियों द्वारा समय पर निर्णय न लेने से लंबित मामलों की संख्या बढ़ी: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को एक कड़े आदेश में राज्य प्राधिकारियों के लापरवाह कामकाज पर गंभीर चिंता व्यक्त की। यह आदेश तब आया जब स्थायी अधिवक्ता संबंधित प्राधिकारी से निर्देश न मिलने के कारण न्यायालय की सहायता करने में विफल रहे।
जस्टिस मंजू रानी चौहान की पीठ शिक्षा विभाग से भुगतान के संबंध में सुनैना नामक व्यक्ति द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पिछली सुनवाई (22 जुलाई) में सरकारी वकील को निर्देश प्राप्त करने के लिए समय दिया गया और मामले की सुनवाई 4 अगस्त के लिए निर्धारित की गई। बता दें, 22 जुलाई के आदेश में दर्ज किया गया था कि बेसिक शिक्षा अधिकारी बलिया ने भुगतान का प्रस्ताव पहले ही भेज दिया, जो प्रतिवादी नंबर 2 के समक्ष लंबित है।
जब 4 अगस्त को मामले की सुनवाई हुई तो सरकारी वकील ने न्यायालय की सहायता करने में असमर्थता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सूचना के बावजूद संबंधित प्राधिकारी द्वारा उन्हें कोई निर्देश नहीं दिए गए।
इस पर आपत्ति जताते हुए और इस संबंध में प्रवृत्ति का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने इस प्रकार टिप्पणी की:
"अनुभव किया गया कि राज्य के पदाधिकारी अक्सर अपने वकील को नियत समय के भीतर निर्देश देने में विफल रहते हैं भले ही मामले में विशिष्ट तिथि निर्धारित हो"।
न्यायालय ने कहा कि राज्य के पदाधिकारियों का ऐसा उदासीन रवैया न केवल इस न्यायालय का बहुमूल्य समय बर्बाद करता है, बल्कि त्वरित न्याय प्रशासन में बाधाएं भी डालता है और व्यापक रूप से जनता के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
सिंगल जज ने राज्य के कर्तव्यनिष्ठा से कार्य करने के दायित्व पर ज़ोर देते हुए कहा,
"मैं राज्य के निकायों के लापरवाह कामकाज पर अपनी चिंता व्यक्त करने के लिए बाध्य हूं, क्योंकि उनका यह विशेष दायित्व है कि वे अपने कर्तव्यों का पालन कर्तव्यनिष्ठा और प्रतिबद्धता के साथ करें और तुच्छ मामलों में निर्णय लेने में अपने सुस्त रवैये के कारण न्यायालयों पर अत्यधिक बोझ न डालें। राज्य के अधिकारियों द्वारा समय पर निर्णय लेने में विफलता के कारण न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ जाती है।"
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने वर्तमान मामले को ज़िम्मेदारी से बचने का एक स्पष्ट उदाहरण' तो बताया लेकिन कोई प्रतिकूल आदेश पारित करने से परहेज किया।
इसके बजाय एकल जज ने सक्षम प्राधिकारी से अपेक्षा की कि वह ऐसे मामलों के निपटारे के लिए आवश्यक दिशानिर्देश प्रस्तुत करे, जिनकी न्यायालयों द्वारा कानूनी जांच की आवश्यकता नहीं है और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करे कि सरकारी वकील को निर्धारित समय-सीमा के भीतर निर्देश प्राप्त हों।
न्यायालय ने आगे कहा कि 'छोटे मामलों' में राज्य के पदाधिकारियों द्वारा समय पर निर्णय लेने से राहत मिलेगी। इसलिए न्यायालय ने राज्य के लिए यह आवश्यक पाया कि वह लंबित मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए कुछ रूप रेखाएं निर्धारित करे।
मामले की सुनवाई 20 अगस्त के लिए स्थगित करते हुए न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि अगली तारीख तक निर्देश प्राप्त नहीं होते हैं तो शिक्षा निदेशक (बेसिक) उत्तर प्रदेश और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, बलिया, व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहेंगे।
केस टाइटल- सुनैना सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 4 अन्य