लोकसभा चुनाव 2024: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने PM Modi के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहने वाले नेता की याचिका खारिज की

Update: 2024-10-19 06:17 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनहित किसान पार्टी (JKP) के नेता की चुनाव याचिका खारिज की, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। JKP नेता विजय नंदन ने रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा उनके नामांकन फॉर्म को खारिज किए जाने को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था।

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह की पीठ ने नंदन की याचिका गुण-दोष के आधार पर खारिज की, यह देखते हुए कि उन्होंने 19 दिन की देरी से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

ध्यान रहे कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 81, चुनाव याचिका दाखिल करने के लिए निर्वाचित उम्मीदवार के नामांकन की तिथि से 45 दिन की अवधि प्रदान करती है।

इसके अलावा धारा 86 के तहत हाईकोर्ट को उन चुनाव याचिकाओं को खारिज करना आवश्यक है, जो धारा 81, 82 और 117 का अनुपालन नहीं करती हैं।

ध्यान रहे कि मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से आने वाले JKP नेता विजय नंदन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया कि जिला निर्वाचन अधिकारी ने उनके नामांकन पत्र को इस आधार पर गलत तरीके से खारिज कर दिया कि हलफनामे का कॉलम खाली छोड़ दिया गया। न ही कोई नया हलफनामा दाखिल किया गया, न ही शपथ दिलाया गया था।

याचिकाकर्ता का तर्क है कि संबंधित सहायक रिटर्निंग अधिकारी द्वारा चेकलिस्ट पर मौजूद दस्तावेजों को ठीक से प्राप्त किए जाने के बाद भारत के चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार, रिटर्निंग अधिकारी और सहायक रिटर्निंग अधिकारी उम्मीदवार को शपथ दिलाने के लिए जिम्मेदार थे।

याचिका में कहा गया कि शपथ लेने के बाद रसीद की मुहर पर हस्ताक्षर करके उम्मीदवार को दिया जाना था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उनके नामांकन पत्र को मनमाने ढंग से खारिज कर दिया गया।

चुनाव याचिका में किए गए दावे

याचिका में कहा गया कि रिटर्निंग अधिकारी के नामांकन फॉर्म अस्वीकृति आदेश (दिनांक 15 मई, 2024) को ध्यानपूर्वक और विस्तृत रूप से पढ़ने पर लिपिकीय गलती सामने आई है, जिसे जांच के समय सुधारा जा सकता था याचिका में तर्क दिया गया कि रिटर्निंग ऑफिसर ने ऐसा न करके अवैधानिकता की है।

याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि किसी भी नामांकन फॉर्म को तभी खारिज किया जा सकता है, जब घोषणा देने में कोई तथ्य छिपा हो लेकिन वर्तमान मामले में पूरे विवादित आदेश में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि याचिकाकर्ता ने उम्मीदवारी प्रस्तुत करते समय कोई जानकारी छिपाई है।

याचिकाकर्ता ने यह भी प्रस्तुत किया कि यदि हलफनामे का कॉलम खाली छोड़ दिया गया तो गलती को सुधारना रिटर्निंग ऑफिसर का कर्तव्य था। लिपिकीय त्रुटि को दूर करने के बजाय रिटर्निंग ऑफिसर ने प्राकृतिक न्याय का घोर उल्लंघन करते हुए याचिकाकर्ता की नामांकन फॉर्म को खारिज कर दिया, जो न्यायोचित नहीं है।

यदि रिटर्निंग ऑफिसर ने अवैध रूप से और कानून के अनुरूप काम किया होता तो वह याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत नामांकन फॉर्म को स्वीकार कर लेता और उसे चुनाव लड़ने की अनुमति देता।

याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता को चुनाव लड़ने के उसके बहुमूल्य अधिकार से वंचित करके प्रतिवादी नंबर 4 ने कानून के विपरीत काम किया। उसके फैसले में माननीय न्यायालय को हस्तक्षेप करना चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया कि सहायक रिटर्निंग अधिकारी ने चुनाव आयोग के नियमों का पालन नहीं किया यही वजह है कि सहायक रिटर्निंग अधिकारी चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार आपराधिक दंड के पात्र हैं।

भारत के 140 करोड़ नागरिक माननीय चुनाव आयोग पर भरोसा करते हैं और अपने देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को चुनने के लिए लोकसभा चुनाव में सांसदों के लिए अपना वोट देते हैं, जो देश का विकास कर सकें, जिसमें जिला चुनाव अधिकारी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन वाराणसी जिला चुनाव अधिकारी ने भारत के 140 करोड़ नागरिकों का भरोसा तोड़कर व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए सभी नियमों का उल्लंघन किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के अजय राय को 152,513 मतों से हराकर वाराणसी सीट जीती। 2014 के बाद से यह सबसे कम अंतर से उनकी जीत थी। पीएम मोदी सहित सात उम्मीदवारों ने वाराणसी सीट से चुनाव लड़ा था, क्योंकि डीईओ ने 36 नामांकन पत्रों को खारिज कर दिया था।

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