धारा 125 सीआरपीसी के तहत गुजारा भत्ता आदेश धारा 127 के तहत वापस लिया जा सकता है, धारा 362 सीआरपीसी के तहत रोक ऐसे मामलों में लागू नहीं होती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-05-18 06:36 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि धारा 125 सीआरपीसी के तहत पारित आदेश अंतिम या अंतरिम हो सकता है और धारा 127 सीआरपीसी के तहत वापस लिया या बदला जा सकता है। इसलिए धारा 362 सीआरपीसी के तहत रोक ऐसे मामलों में लागू नहीं होती।

धारा 362 सीआरपीसी के अधिदेश का अवलोकन करते हुए जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि यदि सीआरपीसी के तहत कोई प्रावधान प्रदान किया गया, जो निर्णय या अंतिम आदेश को वापस लेने या बदलने की अनुमति देता है तो धारा 362 सीआरपीसी के तहत प्रतिबंध उन प्रावधानों पर लागू नहीं होगा जैसा कि धारा 125 सीआरपीसी के मामले में है।

संदर्भ के लिए धारा 362 सीआरपीसी में कहा गया कि अंतिम निर्णय या आदेश को हस्ताक्षरित होने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता या उसकी समीक्षा नहीं की जा सकती है, जब तक कि कोड या किसी अन्य कानून द्वारा प्रावधान न किया गया हो।

सिंगल न्यायाधीश ने ये टिप्पणियां फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाले पति द्वारा दायर आवेदन खारिज करते हुए कीं, जिसने उसकी पत्नी (विपरीत पक्ष संख्या 2) और बेटी (विपरीत पक्ष नंबर 3) द्वारा दायर वापस लेने के आवेदन को अनुमति दी।

आवेदक से धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण की मांग करने वाले विपरीत पक्ष नंबर 1 और 2 द्वारा दायर आवेदन (अभियोजन की कमी के कारण) को खारिज करने के संबंध में वापस लेने का आवेदन दायर किया गया था।

आरोपित आदेश में निचली अदालत ने कहा कि 125 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही में यदि मुकदमा अभियोजन के अभाव में खारिज कर दिया गया तो इसे धारा-126(3) सीआरपीसी के तहत वापस बुलाया जा सकता है, जहां अदालत के पास परिस्थितियों के अनुसार ऐसा आदेश देने की पूरी शक्ति है।

हाईकोर्ट के समक्ष आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि वापस बुलाने का आदेश त्रुटिपूर्ण था, क्योंकि एक बार आपराधिक कार्यवाही में अभियोजन के अभाव में धारा 125 सीआरपीसी के तहत आवेदन खारिज करने का आदेश पारित हो जाने के बाद धारा 362 सीआरपीसी के प्रतिबंध को देखते हुए इसे वापस नहीं बुलाया जा सकता या संशोधित नहीं किया जा सकता।

दूसरी ओर विपक्षी पक्षों के वकील ने तर्क दिया कि यह स्पष्ट है कि धारा 362 सीआरपीसी में ही अपवाद प्रदान किया गया है और उस अपवाद का उल्लेख धारा 127 सीआरपीसी में किया गया, जो अदालत को धारा 125 सीआरपीसी के तहत पारित किसी भी आदेश को बदलने या संशोधित करने की अनुमति देता है।

अपने आदेश में सिंगल जज ने उल्लेख किया कि धारा 362 के तहत प्रतिबंध कुछ अपवादों के लिए प्रदान करता है और धारा 125 सीआरपीसी के तहत पारित आदेशों के संबंध में मजिस्ट्रेट के पास धारा 126 (3) सीआरपीसी के तहत ऐसा आदेश देने की शक्ति है जो न्यायसंगत और उचित हो।

अदालत ने आगे कहा कि धारा 127 सीआरपीसी यह भी प्रदान करती है कि अदालत जिसने धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण के लिए आदेश पारित किया, जिसमें अंतरिम भरण-पोषण आदेश भी शामिल है, उसको आवश्यकतानुसार ऐसा परिवर्तन करने का अधिकार है।

अदालत ने कहा,

“धारा 125 सीआरपीसी में जैसा कि मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देश देते हैं। अभिव्यक्ति का उपयोग समय-समय पर अभिव्यक्ति का उद्देश्य और अर्थ रखता है। यह स्पष्ट रूप से विचार करता है कि धारा 125 (1) सीआरपीसी के तहत पारित आदेश मजिस्ट्रेट को समय-समय पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना पड़ सकता है। उपरोक्त विधायी योजना यह दर्शाती है कि धारा 125 सीआरपीसी के तहत आदेश पारित करने के बाद मजिस्ट्रेट पदेन नहीं हो जाता है।”

इसे देखते हुए न्यायालय ने विशेष रूप से माना कि 125 सीआरपीसी के तहत पारित आदेश अंतिम या अंतरिम हो सकता है और 127 सीआरपीसी के तहत वापस लिया जा सकता है या बदला जा सकता है; इसलिए ऐसे मामलों में धारा 362 सीआरपीसी का प्रतिबंध लागू नहीं होता है।

केस टाइटल- राजकुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य 2024

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