सुप्रीम कोर्ट से पुष्टि प्राप्त भूमि अधिग्रहण धारा 24(2) के तहत न तो निरस्त होगा, न ही पुनर्जीवित: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-09-18 11:07 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिन भूमि अधिग्रहण कार्यवाहियों को सुप्रीम कोर्ट पहले ही वैध ठहरा चुका है, उन्हें भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन में न्यायसंगत मुआवज़ा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) के आधार पर न तो पुनर्जीवित किया जा सकता है और न ही अमान्य घोषित।

जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने यह टिप्पणी मेरठ ज़िले की भूमि अधिग्रहण से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए दी। अदालत ने कहा कि अधिग्रहण की कार्यवाही 1990 में पूरी हो चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इसे बरकरार रखा था। ऐसे में अब धारा 24(2) का सहारा लेकर उसे चुनौती नहीं दी जा सकती।

मामला 246.931 एकड़ भूमि के अधिग्रहण से जुड़ा है, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने गंगानगर आवासीय व्यावसायिक योजना के लिए अर्जेंट क्लॉज़ लगाकर अधिगृहित किया। अधिग्रहण प्रक्रिया के दौरान अधिकांश भूमिधारकों ने मुआवज़ा स्वीकार किया, जबकि कुछ ने इसे अदालत में चुनौती दी। वर्ष 2002 में राज्य सरकार ने अधिग्रहण बरकरार रखने का निर्णय लिया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी यह कहते हुए मुहर लगाई कि भूमि एक बार अर्जेंट क्लॉज़ के तहत अधिग्रहित होने के बाद राज्य में बेदाग़ रूप से निहित हो जाती है।

याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि वास्तविक कब्ज़ा नहीं लिया गया। अधिग्रहण 2013 अधिनियम की धारा 24(2) के तहत समाप्त हो चुका है। हालांकि, अधिकारियों ने अदालत में दस्तावेज़ प्रस्तुत कर यह साबित किया कि कब्ज़ा 2002 में ले लिया गया और मुआवज़ा 2007 में अदालत में जमा कर दिया गया। साथ ही 80 प्रतिशत भूमिधारक मुआवज़ा स्वीकार कर चुके थे।

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के इंदौर डेवलपमेंट ऑथरिटी बनाम मनोहरलाल फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जब भूमि मालिक मुआवज़े में वृद्धि के लिए आवेदन कर चुके हों तो बाद में वे यह दावा नहीं कर सकते कि अधिग्रहण समाप्त हो गया। अदालत ने स्पष्ट किया कि एक बार अधिग्रहण पूरा हो जाने और कब्ज़ा ले लेने के बाद भूमि राज्य सरकार में पूर्ण रूप से निहित हो जाती है और उसे वापस नहीं किया जा सकता, भले ही उसका कुछ हिस्सा अब तक अप्रयुक्त क्यों न हो।

खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिग्रहण को पहले ही वैध ठहराया, इसलिए अब किसी भी स्तर पर इसे डीनोटिफाई करने का प्रश्न ही नहीं उठता। अदालत ने याचिकाओं को Constructive Res Judicata और अत्यधिक विलंब के आधार पर भी ख़ारिज कर दिया।

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