धारा 104 के तहत अपील में पारित आदेशों के खिलाफ सीपीसी की धारा 100 के तहत दूसरी अपील स्वीकार्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 (CPC) की धारा 100 के तहत कोई भी सेकंड अपील उन आदेशों के खिलाफ दायर नहीं की जा सकती जो धारा 104 के तहत पारित किए गए हों।
जस्टिस योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि धारा 104(2) स्पष्ट शब्दों में एक पूर्ण और निरपेक्ष रोक प्रदान करती है।
उन्होंने कहा,
“इस धारा के तहत अपील में पारित किसी आदेश से कोई दूसरी अपील नहीं चलेगी।”
CPC की धारा 100 के अनुसार सेकंड अपील केवल उस स्थिति में संभव है, जब कोई अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित डिक्री के खिलाफ अपील हो और मामला किसी महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न को उठाता हो।
दूसरी ओर, CPC की धारा 104 विभिन्न प्रकार की अंतरिम और मिसलेनियस सिविल अपीलों से संबंधित है जिनमें आदेशों के खिलाफ अपीलें शामिल होती हैं।
अदालत ने स्पष्ट किया कि ऑर्डर XLIII रूल 1(r) के तहत दायर की गई अपील, धारा 104 के तहत आने वाली Miscellaneous Appeal है। ऐसी अपील पर पारित आदेश को CPC की धारा 104(2) के तहत आगे चुनौती नहीं दी जा सकती।
आदेश और डिक्री में अंतर
कोर्ट ने यह भी कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2(14) में ऑर्डर की परिभाषा दी गई, जबकि डिक्री की परिभाषा धारा 2(2) में है। दोनों में स्पष्ट अंतर है और सेकंड अपील केवल डिक्री के खिलाफ ही दायर की जा सकती है आदेश के खिलाफ नहीं।
मामले की पृष्ठभूमि
यह सेकंड अपील वादी द्वारा CPC की धारा 100 के तहत दाखिल की गई और यह जिला जज बलिया द्वारा 20 मार्च 2025 को पास किए गए आदेश को चुनौती दे रही थी।
अदालत ने संहिताओं का अध्ययन कर पाया कि अपील CPC की धारा 104(1) के तहत दायर की गई और आर्डर के स्वरूप की थी न कि डिक्री की। इसलिए इसके विरुद्ध सेकंड अपील CPC की धारा 100 के तहत दायर नहीं की जा सकती।
न्यायालय ने स्पष्ट कहा,
“जब सेक्शन 104(1) के तहत अपील का निस्तारण हो जाता है तो सेक्शन 104(2) किसी भी आगे की अपील को प्रतिबंधित कर देता है। इसलिए न तो दूसरी Miscellaneous Appeal और न ही सेक्शन 100 के तहत सेकंड अपील संभव है।”
निष्कर्ष
उक्त कानूनी स्थिति के आधार पर अदालत ने माना कि इस मामले में सेकंड अपील स्वीकृत नहीं है और इसे खारिज कर दिया।