जिला को पैनल वकीलों को उन सभी मामलों के लिए भुगतान करना आवश्यक, जिनके लिए उन्हें नोटिस प्राप्त हुआ और वे न्यायालय में उपस्थित हुए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जौनपुर जिले को पूर्व पैनल वकील को बकाया फीस का भुगतान करने का निर्देश दिया।
जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने माना कि जिला को उन सभी मामलों के लिए वकील को मुआवजा देना आवश्यक है, जिनमें उन्हें नोटिस प्राप्त हुए और वे न्यायालय में उपस्थित हुए।
16.05.2013 के पत्र द्वारा याचिकाकर्ता को उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी संभाग में गांव सभाओं के लिए पैनल वकील के रूप में नियुक्त किया गया। उक्त संभाग में वाराणसी, गाजीपुर, जौनपुर और चंदौली जिले शामिल हैं। 27.12.2019 को पैनल से हटाए जाने पर याचिकाकर्ता ने उन मामलों के लिए अपने पेशेवर बिलों को उठाया, जिनमें उन्होंने गाँव सभाओं का प्रतिनिधित्व किया।
वाराणसी, गाजीपुर और चंदौली जिलों ने अपने बकाया का भुगतान किया और आश्वासन दिया कि कोई भी लंबित राशि भी याचिकाकर्ता को दी जाएगी। वहीं बार-बार अनुरोध के बावजूद जौनपुर जिले ने उन्हें भुगतान करने से इनकार किया। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अनुरोध किया कि अधिकारियों को याचिकाकर्ता के बकाया भुगतान का निर्देश दिया जाए।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता के पक्ष में आदेश पारित किया लेकिन उसका अनुपालन नहीं किया गया। जवाब में याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका दायर की, जिसके बाद प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया। कहा गया कि उनके समक्ष रखे गए बिल सीधे तौर पर गांव सभा के मामलों से संबंधित नहीं थे।
याचिकाकर्ता ने एक और रिट याचिका दायर की, जिसके तहत न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को अपनी शिकायतों के लिए प्रतिवादी के समक्ष अभ्यावेदन करने की अनुमति दी जाए। हालांकि, प्रतिवादी ने उनके द्वारा प्रस्तुत ताजा अभ्यावेदन को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसके खिलाफ गैर-उपस्थिति या अनुचित व्यवहार के लिए कोई आरोप नहीं लगाया गया। उसका दावा केवल इस तर्क पर खारिज किया जा रहा था कि गांव सभा सीधे तौर पर संबंधित मामलों से संबंधित नहीं थी। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता को गांव सभाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त किया गया। वह उन सभी मामलों में उपस्थित हुआ, जिसमें जौनपुर जिले को पक्षकार बनाया गया। इस प्रकार उन्होंने तर्क दिया कि उसे उसकी सेवाओं के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए।
इसके विपरीत प्रतिवादी के वकील ने प्रस्तुत किया कि उचित मूल्य की दुकान, लोहिया आवास, प्रधानमंत्री आवास, प्रधान के खिलाफ कार्यवाही, परिवार रजिस्टर, आंगबाड़ी वजीफा और राशन कार्ड से संबंधित मामले गांव सभा से संबंधित नहीं थे। यह तर्क दिया गया कि गांव सभा केवल एक परफॉर्मा पार्टी थी। इस प्रकार याचिकाकर्ता उन मामलों के लिए किसी भी भुगतान का हकदार नहीं होगा।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायालय ने याचिकाकर्ता के नियुक्ति पत्र की जांच की और माना कि उसे उन सभी मामलों में उपस्थित होने के लिए नियुक्त और अधिकृत किया गया, जिनमें गांव सभा को पक्ष के रूप में पक्षकार बनाया गया। यह माना गया कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं कि याचिकाकर्ता को उचित मूल्य की दुकान, लोहिया आवास, प्रधानमंत्री आवास आदि से संबंधित मामलों में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है।
अदालत ने माना कि चूंकि इन सभी मामलों में याचिकाकर्ता को नोटिस दिए गए। वह अदालत के समक्ष उपस्थित भी हुआ था। इसलिए वह अपनी पेशेवर फीस प्राप्त करने का हकदार है।
अदालत ने माना,
“चूंकि याचिकाकर्ता को उन सभी मामलों में नोटिस प्राप्त करने के लिए अधिकृत किया गया, जहां गांव सभा एक पक्ष थी और वह अदालत के समक्ष उपस्थित हुआ। अदालत की सहायता की, इसलिए याचिकाकर्ता पेशेवर फीस पाने का हकदार है। याचिकाकर्ता को पेशेवर फीस देने से इनकार करने में प्रतिवादी संख्या 2 की कार्रवाई मनमानी और दुर्भावनापूर्ण है।”
अदालत ने प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता के दावे पर फिर से विचार करने और उसे बकाया फीस का भुगतान करने का निर्देश दिया।
तदनुसार, रिट याचिका को अनुमति दी गई।
केस टाइटल: मनोज कुमार यादव बनाम राज्य उत्तर प्रदेश और अन्य