गैंगस्टर एक्ट के नाम पर चयनात्मक कार्रवाई से कानून का राज कमजोर: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एवं असामाजिक क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम के तहत जांच और अभियोजन की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि चयनात्मक जांच और चयनात्मक अभियोजन कानून के शासन के विरुद्ध है और इससे शासन व्यवस्था पर जनता का भरोसा कमजोर होता है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि प्रभावशाली और संगठित अपराध से जुड़े लोग जमानत की शर्तों का खुलेआम उल्लंघन करते हैं और अदालतों में बार-बार स्थगन लिया जाता है, जबकि अभियोजन तंत्र उन्हें प्रभावी ढंग से चुनौती देने में विफल रहता है।
जस्टिस विनोद दिवाकर ने FIR रद्द किए जाने से संबंधित याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं। मामला उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक क्रियाकलाप (निवारण) नियम, 2021 के तहत दर्ज FIR से जुड़ा है, जिसमें अधिनियम के अनुसार आवश्यक संतोष दर्ज किए बिना ही कार्रवाई किए जाने का आरोप लगाया गया।
अदालत ने कहा कि एक लोकतांत्रिक राज्य की बुनियाद इस सिद्धांत पर टिकी होती है कि हर नागरिक कानून के समक्ष समान है और राज्य की नजर में समान रूप से महत्वपूर्ण है। प्रशासकों को यह समझना चाहिए कि उनके निर्णय न्याय व्यवस्था की दिशा तय करते हैं और इतिहास न केवल उन निर्णयों को दर्ज करता है, बल्कि उन्हें दोहराता भी है। कोर्ट ने गृह विभाग को आगाह करते हुए कहा कि चयनात्मक जांच और अभियोजन कानून के राज के विपरीत हैं और इससे शासन में जनता का विश्वास धीरे-धीरे खत्म होता है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी पाया कि जिन जिलों में पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली लागू है वहां गैंग चार्ट को मंजूरी देने की प्रक्रिया में जिलाधिकारी को शामिल नहीं किया जा रहा है। जबकि जिन जिलों में कमिश्नरेट व्यवस्था नहीं है, वहां गैंग चार्ट को मंजूरी देने के लिए जिलाधिकारी और सीनियर पुलिस अधीक्षक की संयुक्त बैठक होती है। कोर्ट ने इसे उत्तर प्रदेश गैंगस्टर नियम, 2021 के नियम 5(3)(a) का उल्लंघन बताया, जिसमें स्पष्ट रूप से गैंग चार्ट की स्वीकृति के लिए जिलाधिकारी और एसएसपी या पुलिस आयुक्त की संयुक्त बैठक अनिवार्य की गई।
इस पर राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा गया। सरकारी वकील ने दलील दी कि 26 नवंबर, 2022 की सरकारी अधिसूचना के तहत राज्यपाल ने महानगरीय क्षेत्रों में पुलिस आयुक्तों, संयुक्त आयुक्तों और अतिरिक्त आयुक्तों को जिलाधिकारी के सभी अधिकार प्रदान किए, जिनमें गैंगस्टर एक्ट के तहत अधिकार भी शामिल हैं।
हालांकि, अदालत ने इसके बाद भी सवाल उठाया कि कमिश्नरेट जिलों में पुलिस को इतने व्यापक और स्वतंत्र अधिकार क्यों दिए गए, जबकि गैर-कमिश्नरेट जिलों में यही प्रक्रिया संयुक्त प्रशासनिक निगरानी में होती है। कोर्ट ने आशंका जताई कि इस तरह की व्यवस्था का दुरुपयोग अक्सर छोटे और सड़क स्तर के अपराधियों के खिलाफ होता है, जबकि वास्तविक गैंगस्टर और संगठित अपराध सिंडिकेट बहुत हद तक अप्रभावित रहते हैं।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने गैंगस्टर मामलों के शीघ्र निस्तारण, गवाहों की पेशी सुनिश्चित करने, गवाह संरक्षण योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन, अभियोजन गवाहों की समय पर अदालत में उपस्थिति या जिला शासकीय अधिवक्ताओं को संवेदनशील बनाने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई। इसके अलावा, पुलिस की जवाबदेही तय करने के लिए भी केवल पारंपरिक विभागीय जांचों पर ही निर्भरता दिखाई देती है, जो प्रायः निचले स्तर के अधिकारियों तक सीमित रह जाती है।
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि संगठित अपराध से जुड़े प्रभावशाली आरोपी अक्सर जमानत की शर्तों का उल्लंघन करते हैं। अभियोजन विभाग और जिला सरकारी वकील उनकी नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करने में विफल रहते हैं। आरोपियों की ओर से बार-बार स्थगन याचिकाएं दाखिल की जाती हैं, जिन्हें बिना ठोस आपत्ति के स्वीकार कर लिया जाता है जबकि जमानत रद्द कराने की दिशा में कोई गंभीर प्रयास नहीं होता। कोर्ट ने कहा कि अभियोजकों की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करने और उनकी जवाबदेही तय करने के लिए भी राज्य स्तर पर कोई प्रभावी तंत्र मौजूद नहीं है।
इन टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह यह स्पष्ट करे कि कमिश्नरेट व्यवस्था में जिलाधिकारी को बाहर रखते हुए गैंगस्टर एक्ट के तहत कामकाज किस आधार पर किया जा रहा है। अदालत ने यह भी पूछा कि कमिश्नरेट प्रणाली लागू होने के बाद अपराध दर में वास्तव में कोई कमी आई है या नहीं और जिन अधिकारियों को जिलाधिकारी के कार्य सौंपे गए हैं, क्या उन्हें इसके लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया गया।
इसके अतिरिक्त कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक (अभियोजन) को गैंगस्टर एक्ट से संबंधित जिलेवार विस्तृत आंकड़े प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। गृह विभाग को यह भी निर्देश दिया गया कि वह गैंगस्टर एक्ट या उससे जुड़े मामलों में शक्ति के दुरुपयोग को लेकर अधिकारियों के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाइयों और विभागीय कार्यवाहियों का पूरा ब्योरा अदालत के समक्ष रखे।