एक ही गलती पर दो बार सजा नहीं दी जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने CISF कांस्टेबल को राहत दी

Update: 2025-12-23 06:20 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि किसी कर्मचारी को एक ही कदाचार के लिए एक से अधिक बार दंडित नहीं किया जा सकता। इसी सिद्धांत को दोहराते हुए कोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के एक कांस्टेबल को राहत प्रदान की, जिसे पहले ही उसी कथित कदाचार के लिए लघु दंड दिया जा चुका था लेकिन बाद में उसी आधार पर उसे बड़ी सजा के समान दुष्परिणाम भुगतने पड़े।

जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा,

“कोई भी व्यक्ति एक ही कदाचार के लिए एक से अधिक बार दंडित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता को पहले ही वार्षिक वेतन-वृद्धि रोके जाने और वेतन कटौती जैसी लघु सजाएं दी जा चुकी थीं। इसके बावजूद दक्षता बाधा पार करने से रोकना वास्तव में एक बड़ी सजा के समान है, जिसका असर उसके वेतन और अंततः पेंशन तक पर पड़ा।

मामले के अनुसार याचिकाकर्ता की नियुक्ति वर्ष 1987 में CISF में कांस्टेबल के पद पर हुई थी। सेवा के दौरान उसे दो वार्षिक वेतनवृद्धियां रोके जाने की लघु सजा दी गई।

इसके बाद जब वर्ष 1991 में दक्षता बाधा पार करने का अवसर आया तो दक्षता बोर्ड ने उसे नॉट येट फिट घोषित कर यह लाभ नहीं दिया। हालांकि वर्ष 1994 में उसे 'फिट' मानते हुए वेतनवृद्धि का लाभ दे दिया गया लेकिन तीन वर्षों तक रोके जाने के कारण उसका वेतन समान पद और सेवा अवधि वाले कर्मचारियों से कम रह गया।

याचिकाकर्ता ने दक्षता बाधा पार न करने के निर्णय और दक्षता बोर्ड की कार्यवाही को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने कहा कि दक्षता बाधा पार करने से केवल उसी स्थिति में रोका जा सकता है, जब कर्मचारी की कार्यक्षमता या दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो। ऐसे कारण जो कर्मचारी की कार्यक्षमता को प्रभावित नहीं करते, उन्हें इस आधार के रूप में नहीं अपनाया जा सकता।

कोर्ट ने यह भी पाया कि दक्षता बोर्ड ने जिन दो लघु सजाओं को आधार बनाया उन्हीं के लिए पहले ही याचिकाकर्ता को दंडित किया जा चुका था। ऐसे में उन्हीं कारणों से दक्षता बाधा पार करने से रोकना दोहरी सजा देने के समान है।

न्यायालय ने कहा कि इसका प्रभाव संचयी रहा है, क्योंकि इसका असर याचिकाकर्ता की सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाली पेंशन पर भी पड़ा।

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली और संबंधित विभाग को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता का वेतन और अन्य सेवा लाभ पुनः गणना कर बकाया राशि का भुगतान किया जाए।

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