इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछली अस्वीकृति छुपाकर बार बार अनुकंपा नियुक्ति याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया

Update: 2025-07-30 07:26 GMT

पिछले हफ़्ते इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वादी पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया, जो अनुकंपा नियुक्ति के लिए अपने आवेदन पर विचार के लिए बार-बार हाईकोर्ट का रुख कर रहा था, जबकि उसका दावा 2011 में खारिज कर दिया गया था और 2011 के आदेश को चुनौती नहीं दी गई थी।

याचिकाकर्ता के पिता की 2007 में सेवाकाल के दौरान मृत्यु हो जाने के बाद उसने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। 2011 में उसका दावा खारिज कर दिया गया। फिर भी याचिकाकर्ता ने 2011 के आदेश का खुलासा किए बिना 2016 में अपने दावे पर विचार के लिए हाईकोर्ट का रुख किया। प्राधिकारी द्वारा एक और आदेश पारित किया गया, जिसमें 2011 के आदेश का खुलासा किया गया और याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया गया। हालांकि, याचिकाकर्ता ने केवल 2017 के आदेश को ही चुनौती दी थी। उन्होंने 2011 के आदेश को फिर से हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी।

2017 का आदेश रद्द किए बिना मामले को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया गया। याचिकाकर्ता के दावे पर पुनर्विचार करने के बाद उसे 2023 में फिर से खारिज कर दिया गया। इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता ने 2011 के आदेश को फिर से चुनौती नहीं दी और बार-बार पुराने दावे को आगे बढ़ा रहा है।

जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा,

"पिछले दो दौरों में गुमराह करके इस न्यायालय ने पुनर्विचार का अवसर प्रदान किया था याचिकाकर्ता अब गुमराह करने में पूरी तरह विफल रहा है। अभिलेखों और दस्तावेजों पर उपरोक्त सामग्री के आधार पर चूंकि याचिकाकर्ता का दावा वर्ष 2011 में ही खारिज कर दिया गया था जबकि उसे चुनौती नहीं दी गई थी इसलिए मामले को फिर से खोलने की प्रार्थना अनुचित है।"

यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता एक वास्तविक वादी नहीं था, न्यायालय ने उसकी रिट याचिका खारिज कर दी और उस पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। उस पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया।

केस टाइटल: हरि शंकर बनाम भारत संघ एवं 3 अन्य

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