पत्नी द्वारा झूठा आपराधिक मुकदमा चलाना व्यक्तिगत/पारिवारिक सुरक्षा के बारे में उचित आशंका पैदा कर सकता है, क्रूरता का गठन करता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ झूठा आपराधिक मुकदमा चलाने से पति के मन में अपने परिवार और खुद की सुरक्षा के बारे में उचित आशंका पैदा हो सकती है अगर वह वैवाहिक संबंध में बना रहता है।
यह माना गया कि इस तरह का झूठा आपराधिक मुकदमा हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत क्रूरता का गठन करने के लिए पर्याप्त है।
पक्षों ने 2002 में शादी की और उनके बेटे का जन्म हुआ। प्रतिवादी ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता-पत्नी ने 2006 में उसे छोड़ दिया था। बाद में उसने तलाक की कार्यवाही शुरू की। वर्ष 2011 में उन्होंने अपने वाद में संशोधन करते हुए तलाक के आधार के रूप में क्रूरता को शामिल किया, क्योंकि अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दहेज की मांग के लिए झूठे आपराधिक मामले दर्ज कराए गए। ऐसे झूठे आरोपों के आधार पर उसके परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार किया गया और बाद में उन्हें जमानत दे दी गई।
न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्ता-पत्नी ने विवाह के 6 वर्ष बाद और पति द्वारा तलाक की याचिका दायर करने के बाद दहेज की मांग के संबंध में FIR दर्ज कराई। माता-पिता और प्रतिवादी को दोषमुक्त कर दिया गया, क्योंकि अपीलकर्ता अपने आरोपों का समर्थन साक्ष्य के साथ नहीं कर सकी और अपने बयान से पलट गई।
तदनुसार, न्यायालय ने माना कि क्रूरता सिद्ध हुई।
अपीलकर्ता के वकील ने अपर प्रिंसिपल जज, फैमिली कोर्ट, कानपुर नगर द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को चुनौती देते हुए दलील दी कि अपीलकर्ता द्वारा अपने वैवाहिक जीवन में सामना की गई बुरे व्यवहार के कारण आपराधिक मामले दर्ज किए गए। हालांकि न्यायालय ने पाया कि ऐसे आरोप सिद्ध नहीं हुए।
इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता अपने पति के साथ वैवाहिक संबंध को पुनर्जीवित करने के लिए आपराधिक कार्यवाही में अपने बयान से पलट गई। यद्यपि अपीलकर्ता ने दावा किया कि पक्षों के बीच समझौता हो गया लेकिन न्यायालय के समक्ष ऐसा कोई दस्तावेज रिकॉर्ड में नहीं लाया गया।
न्यायालय ने कहा कि भले ही पक्षकार एक-दूसरे के माता-पिता को ससुराल वाले बता सकते हैं लेकिन एक बार माता-पिता की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ आरोप झूठे पाए जाने के बाद क्रूरता का सख्त सबूत नहीं मांगा जा सकता।
यह माना गया कि यदि दहेज की मांग साबित हो जाती तो यह अलग मामला होता। चूंकि आरोप झूठे थे और इससे प्रतिवादी और उसके परिवार की प्रतिष्ठा प्रभावित हुई, इसलिए न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी के साथ क्रूर व्यवहार किया गया और भविष्य में ऐसा दोबारा होने के डर से वह अपीलकर्ता के साथ सहवास नहीं करना चाहता।
जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने कहा,
“तलाक सिविल कार्यवाही होने के कारण सब कुछ अलग होने के बावजूद इसकी संस्था ने प्रतिवादी पति/पत्नी को (उस कार्यवाही में) अपने पति/पत्नी के साथ बदला लेने के लिए कभी भी प्रेरित नहीं किया होगा-झूठा आपराधिक मामला दर्ज करके। अपीलकर्ता द्वारा किए गए उस कृत्य के कारण प्रतिवादी और उसके परिवार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। ऐसा होने के बाद प्रतिवादी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह इससे उबर पाएगा और अपने वैवाहिक संबंधों को फिर से शुरू कर पाएगा।
यह देखते हुए कि दोनों पक्ष अच्छी तरह से शिक्षित है, न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी-पति को अपीलकर्ता-पत्नी द्वारा झूठे आपराधिक मुकदमे के कारण प्रतिष्ठा का नुकसान हुआ है। इस प्रकार, भविष्य में भी ऐसा ही जोखिम रहेगा।
तदनुसार, न्यायालय ने तलाक का आदेश बरकरार रखा।
केस टाइटल- तृप्ति सिंह बनाम अजात शत्रु