अवैध निर्माण गिराने का आश्वासन देने के बाद कंपाउंडिंग की उम्मीद नहीं कर सकता दोषी पक्ष: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध निर्माण के मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि जब किसी पक्ष ने स्वयं यह स्वीकार करते हुए शपथपत्र दिया हो कि वह स्वीकृत मानचित्र से हटकर किए गए निर्माण को गिरा देगा तो बाद में वह यह अपेक्षा नहीं कर सकता कि विकास प्राधिकरण उससे मानचित्र कंपाउंड कराने के लिए संपर्क करे। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को इस तरह की राहत का कोई अधिकार नहीं है।
जस्टिस सरल श्रीवास्तव और जस्टिस सुधांशु चौहान की खंडपीठ प्रयागराज के न्यू कटरा क्षेत्र में किए गए अवैध और बिना स्वीकृति वाले निर्माण से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही थी। अदालत ने कहा कि प्रतिवादी नंबर 6 और 7 को यह भली-भांति ज्ञात था कि उनका निर्माण स्वीकृत नक्शे के अनुरूप नहीं है और उसमें गंभीर विचलन किया गया। इसके बावजूद प्रतिवादी नंबर 6 ने शपथपत्र दाखिल कर यह आश्वासन दिया कि वह स्वीकृत मानचित्र से अलग किए गए निर्माण को स्वयं ध्वस्त कर देगी। ऐसे में वह बाद में प्राधिकरण से यह अपेक्षा नहीं कर सकती कि उससे कंपाउंडिंग के लिए कहा जाए।
यह याचिका न्यू कटरा क्षेत्र के एक स्थायी निवासी द्वारा दायर की गई, जिनका कहना था कि पड़ोसी प्लॉट पर हो रहे अवैध निर्माण के कारण न तो आवश्यक सेटबैक छोड़ा गया और न ही नियमों का पालन किया गया। इससे उनके पुराने मकान की नींव प्रभावित हो रही थी। साथ ही उनके हवा और रोशनी के अधिकार का भी हनन हो रहा था।
अदालत ने रिकॉर्ड पर यह तथ्य नोट किया कि प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने 3 मई, 2025 को संबंधित परिसर को सील करने का आदेश पारित किया। इसके बाद प्रतिवादी नंबर 6 ने बेसमेंट में जलभराव की आशंका जताते हुए डी-सीलिंग के लिए आवेदन किया और शपथपत्र में यह कहा कि किसी भी अवैध निर्माण को वह स्वयं गिरा देंगी। इसके आधार पर परिसर को डी-सील कर दिया गया। हालांकि, अदालत ने पाया कि डी-सीलिंग की अनुमति देने का अधिकार सचिव के पास नहीं था, विशेषकर तब, जब निर्माण कंपाउंडिंग की सीमा से कहीं अधिक था। अदालत ने यह भी पाया कि डी-सीलिंग के बाद भी अवैध निर्माण जारी रहा।
खंडपीठ ने इस स्थिति पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि यह चौंकाने वाला है कि विकास प्राधिकरण ने इलाके के निवासियों की सुरक्षा और अधिकारों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई। अदालत ने कहा कि स्वीकृत सीमा से अधिक बेसमेंट निर्माण से याचिकाकर्ता के मकान की नींव को गंभीर नुकसान हो सकता है, जिससे न केवल संपत्ति का नुकसान बल्कि मानव जीवन को भी खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसके साथ ही, नियमों के विपरीत सेटबैक न छोड़े जाने से याचिकाकर्ता के ताजे हवा और धूप के अधिकार भी प्रभावित हो रहे हैं, जो स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक हैं।
अदालत ने यह भी नोट किया कि प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने परिसर को दोबारा सील करने की कार्रवाई तब की, जब अदालत ने मामले का संज्ञान लिया। इस पर अदालत ने प्राधिकरण के रवैये पर नाराजगी जताई। मामले में प्राधिकरण के उपाध्यक्ष को तलब किया गया, जिन्होंने स्वीकार किया कि किया गया निर्माण कंपाउंडिंग की सीमा से बाहर था।
हालांकि, निजी प्रतिवादियों और प्राधिकरण के वकीलों ने अवैध निर्माण गिराने का आश्वासन दिया, लेकिन अदालत ने यह भी पाया कि प्राधिकरण ने प्रतिवादियों को मानचित्र कंपाउंड कराने का एक और अवसर दिया। उसके बाद ही ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया गया। जब प्रतिवादियों के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि ध्वस्तीकरण आदेश को अलग कार्यवाही में चुनौती दी जाएगी तो अदालत ने इस रवैये की कड़ी आलोचना की।
अदालत ने टिप्पणी की कि न्यायालय कानून का पालन करने वाले नागरिकों के लिए होते हैं, न कि उन लोगों के लिए जो कानून में विश्वास नहीं रखते और बेखौफ होकर उसका उल्लंघन करते हैं। प्रतिवादियों के लगातार अड़ियल रवैये को देखते हुए अदालत ने अंतिम अवसर देते हुए उनके वकील के आश्वासन पर एक बार फिर उन्हें निर्देश दिया कि वे कंपाउंडिंग की सीमा से बाहर के अवैध निर्माण को तत्काल गिराएं और शेष निर्माण को नियमों के अनुरूप कंपाउंड कराएं।
अदालत ने यह भी गंभीर टिप्पणी की कि प्रयागराज विकास प्राधिकरण के अधिकारी प्रतिवादियों के साथ मिलीभगत करते प्रतीत होते हैं। खंडपीठ ने चेतावनी दी कि यदि अगले दिन तक कंपाउंडिंग और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई नहीं की गई तो वर्तमान और पूर्व उपाध्यक्ष, जिनके आदेश से परिसर डी-सील किया गया, दोनों से स्पष्टीकरण तलब किया जाएगा। साथ ही वर्तमान उपाध्यक्ष को अगली सुनवाई की तारीख पर व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश भी दिया गया।