अत्यंत अफसोसजनक स्थिति: 9 साल पुराने मामले में एडवोकेट जनरल शामिल न करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को लगाई कड़ी फटकार
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने राज्य सरकार की कानूनी कार्यप्रणाली और मुकदमों के प्रति उसके लापरवाह रवैये पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए इसे अत्यंत अफसोसजनक स्थिति करार दिया है। कोर्ट ने यह तीखी टिप्पणी 2016 के एक पुराने मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें राज्य सरकार ने नौ वर्षों तक एडवोकेट जनरल को पेश होने का अनुरोध नहीं किया और अंततः जब नवंबर 2025 में उन्हें इस मामले में शामिल किया गया तो उन्हें केस से संबंधित जरूरी दस्तावेज और रिकॉर्ड तक उपलब्ध नहीं कराए गए।
जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस सैयद कमर हसन रिजवी की खंडपीठ ने राज्य सरकार के आचरण पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि यह बेहद अजीब है कि 2016 में दायर एक याचिका जिसमें राज्य कर संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है उसमें सरकार ने इतने वर्षों तक महाधिवक्ता की सहायता लेने की जरूरत महसूस नहीं की। कोर्ट ने पाया कि राज्य सरकार ने न केवल एडवोकेट जनरल को पेपर बुक देने में लापरवाही बरती बल्कि मुख्य स्थायी वकील के कार्यालय में महाधिवक्ता के कार्यालय के साथ समन्वय स्थापित करने के लिए किसी नोडल अधिकारी की नियुक्ति भी नहीं की गई है। पीठ ने तल्ख लहजे में कहा कि अकेले लखनऊ में ही राज्य सरकार के पैनल में सैकड़ों वकील मौजूद हैं, इसके बावजूद एक महत्वपूर्ण संवैधानिक चुनौती वाले मामले में ऐसी घोर लापरवाही बरती जा रही है।
सुनवाई के दौरान जब अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने यह कहते हुए स्थगन की मांग की कि महाधिवक्ता को अभी तक रिकॉर्ड नहीं मिला है तो पीठ ने इस बात पर भी चिंता जताई कि महाधिवक्ता ने कोर्ट के पिछले निर्देश के बावजूद वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़ना उचित नहीं समझा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि महाधिवक्ता की पहली उपस्थिति होने के नाते वे स्थगन दे सकते थे, लेकिन अधिकारियों और विभाग का रवैया बेहद पीड़ादायक है।
यह पूरा मामला प्रसिद्ध ई-कॉमर्स कंपनी 'ई-कार्ट' (eKart) द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है, जिसमें उत्तर प्रदेश स्थानीय क्षेत्रों में माल के प्रवेश पर कर (संशोधन) अधिनियम, 2016 की वैधता को चुनौती दी गई है। 2017 में कोर्ट ने कंपनी को अंतरिम राहत देते हुए व्यापार जारी रखने की अनुमति दी थी, जिसके बदले कंपनी ने समय-समय पर लगभग 19 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी जमा की थी। याचिकाकर्ता का आरोप है कि जीएसटी व्यवस्था लागू होने के बावजूद अधिकारियों ने उनकी बैंक गारंटियों को एकतरफा तरीके से भुना लिया है, जो कि कानूनन गलत है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने अब कड़ा रुख अख्तियार किया है। अदालत ने डिप्टी कमिश्नर को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर उन परिस्थितियों को स्पष्ट करने का निर्देश दिया है जिनके तहत बैंक गारंटियों को भुनाया गया। इसके साथ ही, उत्तर प्रदेश सरकार के संस्थागत वित्त विभाग के विशेष सचिव को भी हलफनामा देकर यह बताना होगा कि इस मामले में महाधिवक्ता को नियुक्त करने में इतनी देरी क्यों हुई और समन्वय के लिए नोडल अधिकारी की व्यवस्था क्यों नहीं की गई। इस महत्वपूर्ण मामले की अगली सुनवाई अब 8 जनवरी 2026 को होगी।