इलाहाबाद हाईकोर्ट ने UAPA के तहत गिरफ्तार कथित अल-कायदा सदस्य को ज़मानत दी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को QIS (भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा) और JMB (जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश) के एक कथित कार्यकर्ता को अन्य 11 कथित कार्यकर्ताओं के समान आधार पर ज़मानत दे दी जिन्हें पिछले साल हाईकोर्ट ने राहत दी थी।
जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस अबधेश कुमार चौधरी की खंडपीठ ने आरोपी (मोहम्मद कामिल उर्फ़ कामिल) को ज़मानत दी, जिसके एक महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से उसकी याचिका पर 3 महीने में फैसला करने का अनुरोध किया था।
स्पेशल NIA अदालत द्वारा उन्हें ज़मानत देने से इनकार करने के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी अपील में मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया कि पिछले साल हाईकोर्ट ने नौ सह-आरोपियों की छह आपराधिक अपीलों को स्वीकार कर लिया और चूंकि उनके खिलाफ आरोप समान हैं इसलिए उनकी अपील को भी स्वीकार किया जाना चाहिए।
संदर्भ के लिए अन्य आरोपियों को पिछले साल मई में CrPC की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट ज़मानत दी गई, क्योंकि एक खंडपीठ ने माना कि मामले में आरोपियों के संबंध में जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने का विशेष अदालत का आदेश अवैध था, क्योंकि उक्त आदेश उनकी अनुपस्थिति में पारित किया गया।
अपीलकर्ता जिस पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 121-ए और 123 तथा गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) की धारा 13, 18, 18-बी, 20 और 38 के तहत मामला दर्ज किया गया, को उत्तर प्रदेश में QIS और JMB के लिए स्लीपर मॉड्यूल तैयार करने में सहायता करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने अन्य लोगों के साथ मिलकर लोगों में राष्ट्र-विरोधी जेहादी और आतंकवादी मानसिकता फैलाते हुए लोगों की भर्ती की ताकि राष्ट्र की एकता संप्रभुता और अखंडता को ख़तरा पैदा किया जा सके और लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अस्थिर किया जा सके।
यद्यपि राज्य के वकील ने ज़मानत याचिका का विरोध किया लेकिन वे इस तथ्य पर विवाद नहीं कर सके कि अन्य सह-अभियुक्तों को उनकी संबंधित अपीलों में ज़मानत पर रिहा कर दिया गया, जिससे उनके विरुद्ध पारित विवादित आदेशों को रद्द कर दिया गया।
उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और समता के सिद्धांतों पर विचार करते हुए कोर्ट ने उनकी अपील स्वीकार कर ली और उचित विश्वसनीय ज़मानतों के साथ 1,00,000 रुपये का ज़मानत बांड प्रस्तुत करने की शर्त पर विवादित आदेश को रद्द करते हुए उन्हें ज़मानत प्रदान की।