प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पर्यावरण मुआवजा वसूलने का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-09-11 06:21 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पर्यावरण मुआवज़ा लगाने का अधिकार और क्षेत्राधिकार प्राप्त है। अदालत ने यह टिप्पणी जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 की धारा 33A के संदर्भ में की है।

जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस मंजिवे शुक्ला की खंडपीठ ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले Indian Council for Enviro Legal Action V. Union of India का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 3 और 5 के तहत केंद्र सरकार को प्रदूषण रोकथाम और सुधारात्मक उपायों की लागत लगाने का अधिकार है।

इसके अलावा खंडपीठ ने दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमेटी बनाम लोधी प्रोपर्टी कंपनी पर भी भरोसा किया जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि,"जल अधिनियम, 1974 की धारा 33A और वायु अधिनियम 1981 की धारा 31A के अंतर्गत बोर्ड्स को वही अधिकार प्राप्त हैं जो पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 5 के तहत केंद्र सरकार को दिए गए हैं।"

पूरा मामला:

याचिकाकर्ता की औद्योगिक इकाई को 2021 में बंद करने का आदेश दिया गया था और उस पर 14,20,000 का पर्यावरण मुआवज़ा लगाया गया था। बाद में 25.03.2022 का एक और आदेश पारित हुआ। इसके बाद आदेशों को कुछ शर्तों के साथ निरस्त किया गया जिनमें यह भी शामिल था कि 13,20,000 की शेष राशि दो माह में जमा करनी होगी बंदी आदेश पुनः लागू हो जाएगा।

याचिकाकर्ता ने केवल 1,00,000 जमा किया और शेष आदेशों को चुनौती दी। उसका तर्क था कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास धारा 33A के तहत पर्यावरण मुआवज़ा लगाने का अधिकार नहीं है।

हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि जल अधिनियम और वायु अधिनियम के तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स को वही अधिकार प्राप्त हैं जो पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 5 के तहत केंद्र सरकार को मिले हैं। इसलिए बोर्ड्स को पर्यावरण मुआवज़ा लगाने का अधिकार है।

साथ ही अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम की धारा 16 के तहत अपील का वैधानिक उपाय उपलब्ध है। ऐसे में रिट क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है।

नतीजतन, हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

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