NEET के लिए दिव्यांगजनों को आरक्षण विशिष्ट दिव्यांगता पहचान पत्र के आधार पर दिया जाना चाहिए, प्राधिकारी अभ्यर्थी की विकलांगता का पुनर्मूल्यांकन नहीं कर सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि NEET परीक्षा के लिए आरक्षण का लाभ सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी विशिष्ट दिव्यांगता पहचान पत्र (UDID) के आधार पर दिया जाना चाहिए और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम के तहत प्राधिकारी अभ्यर्थी की दिव्यांगता का पुनर्मूल्यांकन नहीं कर सकता।
एक NEET अभ्यर्थी को राहत देते हुए जस्टिस पंकज भाटिया ने कहा,
"राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार नामित प्राधिकारियों को केवल 'कार्यात्मक दिव्यांगता' का आकलन करने का कार्य सौंपा जा सकता है, जिसके लिए अभ्यर्थी को यह आकलन करने हेतु परीक्षण करवाना होगा कि क्या नीट परीक्षा के लिए आवेदन करने वाला व्यक्ति अध्ययन और पाठ्यक्रम की कठिनाइयों को सहन करने में सक्षम है। यह निर्दिष्ट एजेंसी को UDID प्राधिकरण द्वारा जारी प्रमाण पत्र के आधार पर अभ्यर्थी की विकलांगता का पुनर्मूल्यांकन करने का अधिकार नहीं देता। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता ने कार्यात्मक विकलांगता परीक्षण उत्तीर्ण किया। उसे मेडिकल अध्ययन के लिए उपयुक्त पाया गया, प्राधिकरण द्वारा जारी और UDID में दर्शाए गए दिव्यांगता प्रमाण पत्र को आरक्षण प्रदान करने के लाभ के लिए मान्य माना जाएगा। हाईकोर्ट ने पुर्सवानी आशुतोष बनाम भारत संघ (2019) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि किसी व्यक्ति की विकलांगता का आकलन विशिष्ट विकलांगता पहचान पत्र प्राप्त करते समय किया जाता है।”
उन्होंने आगे कहा कि शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के समय दिव्यांगता का परिमाणन विवादास्पद है, क्योंकि आरक्षण का लाभ उठाने के लिए किसी व्यक्ति की पात्रता का मूल्यांकन UDID कार्ड में परिमाणन के आधार पर किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता जिसके शरीर और पैर में 70% स्थायी दिव्यांगता है, ने सक्षम प्राधिकारी से UDID कार्ड प्राप्त किया। याचिकाकर्ता ने 2025 में नीट के लिए आवेदन किया और 'बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्तियों' श्रेणी में आरक्षण का लाभ प्राप्त करने का दावा किया। काउंसलिंग के पहले दौर में याचिकाकर्ता की दिव्यांगता का आकलन 31% किया गया, जिससे वह आरक्षण का लाभ लेने के लिए अयोग्य हो गया, क्योंकि आरक्षण उन छात्रों को दिया गया, जिनकी बेंचमार्क दिव्यांगता 40% से अधिक थी।
तदनुसार, याचिकाकर्ता ने मेडिकल सर्टिफिकेट को चुनौती दी और UDID कार्ड के आधार पर आरक्षण प्रदान करने का अनुरोध किया।
न्यायालय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने विशाल गुप्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य में मूल्यांकन वर्ष 2025-26 के लिए दिव्यांगजन उम्मीदवारों को MBBS कोर्स में एडमिशन देने हेतु मूल्यांकन पद्धति के संबंध में दिशानिर्देश निर्धारित किए।
इसके अलावा, ओम राठौड़ बनाम स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने माना कि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 मानक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के अधिकारों का प्रावधान करता है। यह देखते हुए कि UDID कार्ड एक्ट और उसके तहत बनाए गए नियमों के अनुसार जारी किया जाता है, न्यायालय ने माना कि यह विभिन्न अधिनियमों के तहत लाभों का दावा करने के लिए मान्य है।
आगे कहा गया,
“एक बार क़ानून और बनाए गए नियमों के तहत जारी किए गए उक्त कार्ड को किसी भी ऐसे प्राधिकारी द्वारा किए गए मूल्यांकन द्वारा रद्द नहीं किया जा सकता, जो अधिनियम और नियमों के तहत निर्दिष्ट प्राधिकारी नहीं है।”
यह मानते हुए कि जिन दिशानिर्देशों के तहत याचिकाकर्ता का पुनर्मूल्यांकन किया गया, वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी अंतरिम दिशानिर्देशों से भिन्न थे, जस्टिस भाटिया ने कहा कि एक बार जब प्राधिकारी ने कहा कि याचिकाकर्ता MBBS कोर्स करने के लिए कार्यात्मक विकलांगता से ग्रस्त है, तो आरक्षण का लाभ देने के लिए UDID कार्ड मान्य होगा।
तदनुसार रिट याचिका स्वीकार कर ली गई।
केस टाइटल: माज़ अहमद बनाम यू.ओ.आई., सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, निर्माण भवन, नई दिल्ली एवं 8 अन्य [रिट - सी संख्या 7585/2025]