77 वर्षीय व्यक्ति ने वकीलों और जजों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट के वकीलों और कानपुर जिला जजशिप के जजों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाने वाले समीक्षा आवेदक पर 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया। हालांकि कोर्ट ने आवेदक के खिलाफ आपराधिक अवमानना शुरू करने से खुद को रोक लिया, क्योंकि वह 77 साल का है।
जस्टिस नीरज तिवारी ने कहा,
“याचिकाकर्ता की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और उनकी आयु यानी 77 वर्ष को देखते हुए यह न्यायालय उनके विरुद्ध आपराधिक अवमानना कार्यवाही आरंभ करने से स्वयं को रोकता है लेकिन पुनर्विचार आवेदन में उनके द्वारा लिया गया आधार बहुत अस्पष्ट है। इस तरह की समीक्षा आवेदन दाखिल करना कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है। इसलिए पुनर्विचार आवेदन में कोई दम नहीं है। तदनुसार, इसे 1 लाख रुपए की लागत के साथ खारिज किया जाता है, जिसे याचिकाकर्ता आज से 15 दिनों की अवधि के भीतर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष जमा करेगा।”
आवेदक ने अनुच्छेद 227 नंबर 3034/2024 के तहत मामलों में पारित आदेश के विरुद्ध पुनर्विचार आवेदन दायर किया, जहां आवेदक के वकील ने बयान दिया कि याचिकाकर्ता याचिका का विरोध नहीं करना चाहता है।
इसके बाद याचिकाकर्ता को एक वर्ष के समय में दुकान खाली करने का निर्देश देते हुए आदेश पारित किया गया।
आवेदक-याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उन्होंने मामले में उपस्थित सीनियर एडवोकेट को गुण-दोष पर बहस करने के लिए अधिकृत नहीं किया था।
प्रतिवादी के वकील ने प्रस्तुत किया कि जब न्यायालय रिट याचिका स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं था तो याचिका को वापस लेने के लिए बयान दिया गया, क्योंकि इस पर जोर नहीं दिया गया।
न्यायालय ने पाया कि सीनियर एडवोकेट और बार में अन्य वकीलों के खिलाफ अन्य आरोप भी लगाए गए।
न्यायालय ने सीनियर एडवोकेट को बुलाया, जिन्होंने कहा कि यह बयान सहायक वकील के निर्देशों के आधार पर दिया गया था। याचिकाकर्ता ने उनके साथ उनके आवास पर दुर्व्यवहार किया था।
अन्य सीनियर एडवोकेट ने भी न्यायालय के समक्ष कहा कि उन्होंने दुर्व्यवहार के कारण याचिकाकर्ता का मामला लड़ने से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने पाया कि सीनियर वकीलों के खिलाफ लगाए गए आरोप निराधार हैं। बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और अनावश्यक हैं। कोर्ट ने पाया कि कानपुर के जिला न्यायाधीश के खिलाफ लगाए गए आरोप निराधार हैं और संस्था की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का प्रयास हैं।
इसके अनुसार पुनर्विचार आवेदन खारिज करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता-आवेदक पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
केस का टाइटल- रणधीर कुमार पांडे बनाम पुरुषोत्तम दास माहेश्वरी