इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 वर्षीय पीड़िता को स्वास्थ्य जोखिम के बावजूद 31 सप्ताह की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट कराने की अनुमति दी

Update: 2025-07-30 06:54 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साढ़े 17 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को 31 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति देते हुए कहा कि गर्भवती महिला की इच्छा और सहमति सर्वोपरि है। हालांकि गर्भ गिराने में मां और बच्चे की जान को खतरा था।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने कहा,

“इस मामले में पूरे परामर्श सत्र के बावजूद याचिकाकर्ता और उसके माता-पिता गर्भ को पूरी अवधि तक ले जाने के लिए सहमत नहीं हुए। ऐसा सामाजिक कलंक और घोर गरीबी के डर के साथ-साथ इस तथ्य के कारण हो सकता है कि उसके साथ हुए अपराध ने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह से तोड़ दिया होगा।”

राज्य-प्रतिवादियों ने प्रति-शपथपत्र में कहा था कि गर्भपात मां और बच्चे के जीवन के लिए ख़तरा है। यह देखते हुए कि प्रजनन स्वायत्तता, गर्भपात, गर्भवती महिला की गरिमा और निजता का अधिकार सर्वोपरि है। न्यायालय ने कहा कि वह गर्भावस्था के अंतिम चरण में थी, इसलिए पक्षकार को परामर्श दिया जाना चाहिए और बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया से अवगत कराया जाना चाहिए।

परामर्श के बाद याचिकाकर्ता गर्भपात कराना चाहती थी। परामर्श दल ने बताया कि गर्भपात का निर्णय उसके साथ हुए अपराध और उससे जुड़े सामाजिक कलंक के परिणामस्वरूप अवांछित गर्भावस्था के कारण हो सकता है।

हाईकोर्ट ने A (X की मां) बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जहां यह माना गया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मां के गर्भपात के अधिकार को संरक्षित किया गया।

यह देखते हुए कि गर्भपात का निर्णय सामाजिक कलंक और पीड़िता की मानसिक और शारीरिक स्थिति के कारण हो सकता है, न्यायालय ने भारी मन से गर्भपात की अनुमति दी।

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