मानसिक रूप से विकलांग बेटे की देखभाल कर रहे कर्मचारी का तबादला रद्द करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रशासनिक संवेदनहीनता पर लगाई फटकार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारी के तबादले के अनुरोध को अस्वीकार करने के लिए उत्तर प्रदेश के अधिकारियों की प्रशासनिक संवेदनहीनता की कड़ी आलोचना की। यह कर्मचारी अपने बेटे की देखभाल कर रहा है, जो मानसिक मंदता से पीड़ित है और 50% स्थायी विकलांगता रखता है।
जस्टिस मनीष माथुर की पीठ ने 12 सितंबर, 2025 को यह आदेश पारित किया।
याचिकाकर्ता चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में वरिष्ठ सहायक संतोष कुमार वर्मा ने मैनपुरी से अयोध्या या आस-पास के किसी जिले जिसमें लखनऊ भी शामिल है, में स्थानांतरण की मांग की थी।
याचिकाकर्ता 2021 में मैनपुरी ट्रांसफर होने से पहले अयोध्या में 13 साल तक सेवा दे चुके थे। उन्होंने ट्रांसफर की मांग इस आधार पर की थी कि उनका बेटा जिसके पास भारत सरकार द्वारा जारी 50% स्थायी विकलांगता का प्रमाणपत्र है, अपनी मां के साथ अयोध्या में रहता है और वह उसका देखभालकर्ता है।
मैनपुरी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) ने भी प्रमाणित किया कि वर्तमान पोस्टिंग जिले में कोई मनोचिकित्सक या न्यूरोफ़िज़िशियन उपलब्ध नहीं है। उनकी रिपोर्ट में लखनऊ और अंबेडकर नगर में वरिष्ठ सहायकों के लिए रिक्तियां होने की पुष्टि हुई।
हालांकि 17 जून 2025 को याचिकाकर्ता के अनुरोध को यह कहकर अस्वीकार कर दिया गया कि वह अयोध्या में 13 साल रह चुके हैं। प्रशासनिक कारणों से उन्हें मैनपुरी में जारी रखना आवश्यक है।
राज्य के वकील ने कोर्ट में यह भी कहा कि तबादला सेवा का एक हिस्सा है और पसंद की पोस्टिंग नहीं दी जा सकती।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने पाया कि विकलांगता प्रमाण पत्र और CMO की रिपोर्ट निर्विवाद हैं।
जस्टिस माथुर ने कहा कि प्राधिकरण ने प्रशासनिक संवेदनहीनता दिखाई है और वह याचिकाकर्ता के बेटे की विकलांगता की स्थिति के प्रति पूरी तरह से उदासीन रहा। न्यायालय ने यह भी पाया कि अधिकारी 6 मई, 2025 के सरकारी आदेश के पैरा 5(iv) से अनभिज्ञ थे जो ऐसी विकलांगताओं वाले व्यक्तियों को ट्रांसफर से छूट देता है।
कोर्ट ने संयुक्त निदेशक (स्वास्थ्य सेवा) के इस तर्क को खारिज कर दिया कि आगरा के निकट मानसिक अस्पताल की निकटता पर्याप्त है। कोर्ट ने बल देते हुए कहा कि विकलांगता वाले व्यक्ति के लिए केवल चिकित्सा सुविधाओं की ही नहीं बल्कि उपयुक्त वातावरण की भी आवश्यकता होती है जैसा कि विकलांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम 2016 में मान्यता प्राप्त है।
न्यायालय ने इस स्थिति को दयनीय बताया कि संबंधित अधिकारी याचिकाकर्ता के बेटे की विकलांगता और मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में इलाज चाहने वाले व्यक्ति के बीच अंतर नहीं कर पाए।
अस्वीकृति आदेश को स्पष्ट रूप से अस्थिर पाते हुए जस्टिस माथुर ने सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, लखनऊ को दो सप्ताह के भीतर अंबेडकर नगर में रिक्तियों की रिपोर्ट को देखते हुए याचिकाकर्ता की पोस्टिंग के लिए उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया।