वकीलों की मुवक्किलों और न्यायालय के प्रति दोहरी ज़िम्मेदारी होती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश लिखे जाने के बाद वकीलों के बहस करने की निंदा की

Update: 2025-08-26 10:32 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि वकीलों की दोहरी ज़िम्मेदारी होती है। एक, मुवक्किल के प्रति, और दूसरी न्यायालय के प्रति, जहां उन्हें कार्यवाही में व्यवधान उत्पन्न करने के बजाय सम्मानपूर्वक न्यायालय की सहायता करनी चाहिए।

एक ऐसे मामले में जहां ज़मानत आवेदक के वकील न्यायालय द्वारा ज़मानत खारिज किए जाने के बाद भी बहस करते रहे जस्टिस कृष्ण पहल ने कहा,

“न्यायालय में वकीलों की दोहरी ज़िम्मेदारियों को रेखांकित करता है। जहां उन्हें अपने मुवक्किलों के हितों का निष्ठापूर्वक प्रतिनिधित्व और देखभाल करनी चाहिए, वहीं कोर्ट रूम में सम्मानजनक और अनुकूल वातावरण बनाए रखना भी उनका महत्वपूर्ण कर्तव्य है। वकीलों को व्यवधान उत्पन्न करने के बजाय न्यायालय की सहायता करनी चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि कार्यवाही व्यवस्थित और सम्मानजनक हो, जिससे अंततः न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा बनी रहे।”

आवेदक ने ज़मानत के लिए दूसरी बार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पहली ज़मानत खारिज कर दी गई और ज़मानत देने का कोई नया आधार नहीं दिखाया गया। इसलिए अदालत ने अर्ज़ी खारिज कर दी। अस्वीकृति के बावजूद ज़मानत आवेदक के वकील ने मामले में बहस जारी रखी।

वकील के व्यवहार की निंदा करते हुए अदालत ने कहा,

"आवेदक के वकील ने न केवल ओपन कोर्ट में आदेश पारित होने के बाद भी मामले में बहस जारी रखी बल्कि कार्यवाही में व्यवधान भी डाला। यह व्यवहार अदालत की आपराधिक अवमानना ​​माना जाता है, क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया के अधिकार और मर्यादा को कमज़ोर करता है लेकिन यह अदालत अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू करने से परहेज़ करती है। आदेश पारित होने के बाद किसी भी वादी को अदालत की कार्यवाही में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"

केस टाइटल: नरेंद्र सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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