इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1988 के SP के जज को पुलिस स्टेशन घसीटने की धमकी' वाले मामले को फिर से उठाया, उसके ठिकाने और कार्रवाई की जानकारी मांगी
एक असामान्य आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक 37 साल पुराने मामले को फिर से उठाया, जिसमें एक पूर्व सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (SP) पर आरोप है कि उसने केस की सुनवाई के दौरान एक मौजूदा सेशंस जज को पुलिस स्टेशन घसीटने की धमकी दी थी।
दशकों पुराने फैसले में पीठासीन अधिकारी द्वारा दर्ज की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों को गंभीरता से लेते हुए जस्टिस जे.जे. मुनीर और जस्टिस संजीव कुमार की बेंच ने उत्तर प्रदेश के डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (DGP) को एक पर्सनल एफिडेविट दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें अधिकारी की मौजूदा स्थिति और उसके खिलाफ की गई कार्रवाई का विवरण हो।
यह आदेश पिछले हफ्ते आरोपी द्वारा अपनी सज़ा को चुनौती देने वाली क्रिमिनल अपील की सुनवाई के दौरान पारित किया गया था।
तत्कालीन ललितपुर के सेशंस जज, एल.एन. राय द्वारा दिए गए दोषसिद्धि के फैसले 30 अप्रैल, 1988 को दिया गया की जांच करते हुए हाईकोर्ट का ध्यान पैराग्राफ 190 और 191 पर गया।
बेंच ने नोट किया कि इन पैराग्राफ में ललितपुर के तत्कालीन सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस, बी.के. भोला के खिलाफ बहुत गंभीर टिप्पणियां थीं।
फैसले से उद्धृत करते हुए हाईकोर्ट ने इस प्रकार कहा,
टिप्पणियां इस हद तक जाती हैं कि बी.के. भोला, सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस ललितपुर में इतनी हिम्मत और दुस्साहस था कि उसने विद्वान ट्रायल जज को धमकी दी कि अगर उन्होंने पुलिस से कुछ रिकॉर्ड कुछ वायरलेस संदेश मंगवाए या SP को बचाव पक्ष के गवाह के रूप में पेश होने के लिए मजबूर किया, तो वह उन्हें पुलिस स्टेशन घसीट ले जाएगा।"
कोर्ट ने नोट किया कि हालांकि ट्रायल जज ने उस समय अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की थी लेकिन वह आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए इस कोर्ट में रेफरेंस न करके दयालु थे।
लगभग चार दशक बाद इस मुद्दे को फिर से खोलते हुए हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि SP के आचरण को केवल समय बीत जाने के कारण नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
बेंच ने पाया कि सेशंस जज ने पाया था कि डिस्ट्रिक्ट सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस ने एक गुंडे की तरह व्यवहार किया और ट्रायल जज को धमकी दी।
अधिकारी की मौजूदा हालत के बारे में अनिश्चितता को देखते हुए बेंच ने यह टिप्पणी की,
"हमें नहीं पता कि बी.के. भोला जो शायद अब तक रिटायर हो चुके होंगे इस दुनिया में हैं या नहीं।"
नतीजतन कोर्ट ने DGP, उत्तर प्रदेश को 9 दिसंबर 2025 तक एक एफिडेविट फाइल करने का सख्त निर्देश दिया है, जिसमें इन पॉइंट्स को शामिल किया जाए:
क्या बी.के. भोला अभी भी हैं या नहीं।
क्या वह अभी भी सर्विस में हैं या पेंशन ले रहे हैं।
अगर ज़िंदा हैं तो उनकी पूरी जानकारी, रहने का पता और पुलिस स्टेशन।
सबसे ज़रूरी बात DGP को बेंच को यह भी बताने का निर्देश दिया गया है कि 1988 के फैसले में माननीय ट्रायल जज के निर्देशों के आधार पर बी.के. भोला के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई थी।
कोर्ट ने यह भी देखा कि फैसले में कुछ अन्य अधिकारियों के नाम भी हैं, लेकिन वे मामूली अधिकारी हैं।
बेंच ने टिप्पणी की,
"उनके बर्ताव की जांच करना किसी और दिन का मामला होगा, क्योंकि माननीय सेशंस जज ने पाया था कि डिस्ट्रिक्ट सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस ने एक गुंडे की तरह बर्ताव किया और माननीय ट्रायल जज को धमकी दी।"
अब इस मामले की सुनवाई 9 दिसंबर को होगी।