मध्यस्थता समझौते में केवल 'स्थान' का उल्लेख है तो विपरीत संकेत के अभाव में स्थल को ही सीट माना जाएगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जब मध्यस्थता समझौते में केवल एक ही स्थान का उल्लेख है। उसे स्थान कहा गया तो उसे स्थान भी माना जाएगा, जब तक कि समझौते में कुछ विपरीत उल्लेख न किया गया हो।
जस्टिस जसप्रीत सिंह ने कहा,
"यदि मध्यस्थता समझौते में केवल एक ही स्थान का उल्लेख है। भले ही उसे 'स्थान' कहा गया हो, तो जब तक कि कोई विपरीत संकेत न हो, 'स्थान' को 'स्थान' माना जाएगा।"
आवेदक ने मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम 1996 की धारा 11(6) के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट में मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए आवेदन दायर किया। प्रतिवादी के वकील ने हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र के संबंध में इस आधार पर आपत्ति उठाई कि पक्षकारों ने अन्य सभी न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र को छोड़कर मुंबई की अदालतों में अधिकार क्षेत्र निहित करने पर सहमति व्यक्त की थी। यह भी कहा गया कि पक्षकारों द्वारा तय किए गए मध्यस्थता का स्थान भी मुंबई ही है।
इसके विपरीत आवेदक के वकील ने दलील दी कि केवल 'स्थान' ही मुंबई दर्ज किया गया और पक्षकारों ने मुंबई को मध्यस्थता का 'स्थान' बनाने पर सहमति नहीं जताई। आगे यह तर्क दिया गया कि गैर-मध्यस्थता योग्य विवादों के लिए मुंबई की अदालतों को विशेष अधिकार क्षेत्र प्रदान किया गया। चूंकि मुंबई में कोई वाद-कारण उत्पन्न नहीं हुआ, इसलिए वहां की अदालतों का अधिकार क्षेत्र नहीं है।
समझौते के खंड 21 में लिखा,
"मध्यस्थता की कार्यवाही मुंबई में होगी और अंग्रेजी भाषा में संचालित की जाएगी।"
धारा 22 इस प्रकार है,
"यह समझौता भारत के कानूनों के अनुसार शासित और व्याख्यायित होगा और केवल मुंबई की अदालतों के अनन्य क्षेत्राधिकार के अधीन होगा।"
न्यायालय ने कहा कि इंडस मोबाइल डिस्ट्रीब्यूशन (प्रा.) लिमिटेड बनाम डेटाविंड इनोवेशन्स (प्रा.) लिमिटेड एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि जहां मध्यस्थता का 'स्थान' है, वहां की अदालत को मध्यस्थता कार्यवाही पर अनन्य क्षेत्राधिकार होगा। इसके अलावा, बी.जी.एस. एस.जी.एस. सोमा जेवी बनाम एनएचपीसी लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि विपरीत इरादों के अभाव में पक्षों द्वारा चुना गया स्थान ही मध्यस्थता का स्थान होगा।
जस्टिस सिंह ने माना कि पक्षकारों ने मुंबई में मध्यस्थता के लिए सहमति व्यक्त की और मुंबई की अदालतों को विशेष अधिकार क्षेत्र प्राप्त है। चूंकि मध्यस्थता समझौते में कोई विपरीत खंड मौजूद नहीं था, इसलिए न्यायालय ने माना कि पक्षकारों ने मुंबई को मध्यस्थता के लिए 'स्थान' चुना था।
आगे कहा गया,
"उपर्युक्त के आलोक में इस न्यायालय का स्पष्ट मत है कि मुंबई की अदालतों को अधिकार क्षेत्र प्राप्त होगा, क्योंकि पक्षकारों ने मुंबई को 'स्थान' मानने पर सहमति व्यक्त की थी। इसके अलावा, भले ही इसे 'स्थान' माना जाए, लेकिन किसी भी विपरीत संकेत के अभाव में और विशेष अधिकार क्षेत्र खंड के साथ स्थान को सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 'स्थान' माना जाता है। एक बार 'स्थान' तय हो जाने के बाद उक्त मध्यस्थता से संबंधित सभी कार्यवाही उस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आयोजित की जाएंगी।"
तदनुसार, इलाहाबाद हाईकोर्ट में मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए आवेदन को विचारणीय नहीं माना गया।
केस टाइटल: देवी प्रसाद मिश्रा बनाम मेसर्स नायरा एनर्जी लिमिटेड (पूर्व में एस्सार ऑयल लिमिटेड) प्राधिकरण हस्ताक्षरकर्ता/प्रबंध निदेशक के माध्यम से [सिविल विविध मध्यस्थता आवेदन संख्या - 2