जमानत याचिकाओं में देरी करने वाले लापरवाह पुलिसकर्मियों पर सख़्त कार्रवाई: DGP को सर्कुलर जारी करने का इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (DGP) को निर्देश दिया कि वह सभी जिला पुलिस प्रमुखों को एक सर्कुलर जारी करें कि अगर सरकारी वकील को बेल अर्जियों में निर्देश देने में किसी पुलिस अधिकारी की ओर से कोई लापरवाही पाई जाती है तो उससे सख्ती से निपटा जाएगा।
जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की बेंच ने यह आदेश देते हुए कहा कि किसी आरोपी की आज़ादी को सिर्फ इसलिए कम नहीं किया जा सकता, क्योंकि पुलिस अधिकारियों ने कोर्ट को ज़रूरी निर्देश देने में लापरवाही की।
हाईकोर्ट विनोद राम नामक व्यक्ति की जमानत अर्जी पर सुनवाई कर रहा था, जिस पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 140(1), 61(2) और 238 के तहत मामला दर्ज है। जब इस मामले की पिछली सुनवाई 8 अक्टूबर को हुई तो AGA को जांच और अगवा किए गए व्यक्ति की बरामदगी के बारे में निर्देश लेने के लिए कहा गया।
हालांकि, जब 17 नवंबर को मामला फिर से उठाया गया तो कोर्ट को बताया गया कि बलिया के सीनियर सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (SSP) को पत्र भेजने के बावजूद कोई निर्देश नहीं दिया गया।
इस देरी को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने इस चूक को न्याय प्रशासन में दखलंदाजी के अलावा कुछ नहीं कहा और नोट किया कि ऐसा काम अवमानना है। नतीजतन कोर्ट ने SSP बलिया को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया।
कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए बलिया के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस ओम वीर सिंह ने 25 नवंबर को पर्सनल एफिडेविट दायर किया और कोर्ट को बताया कि सरकारी वकील के ऑफिस ने वास्तव में एक कम्युनिकेशन जारी किया।
हालांकि, एफिडेविट में यह माना गया कि इसे मिलने के बावजूद IO ने ज़रूरी निर्देश नहीं दिए, इसलिए संबंधित SI के खिलाफ एक शुरुआती जांच शुरू की गई और जांच पूरी होने तक उसे सस्पेंड कर दिया गया।
जांच की खूबियों के बारे में पुलिस ने बताया कि अगवा किए गए व्यक्ति का शव पुलिस की पूरी कोशिशों के बावजूद नहीं मिल पाया, क्योंकि आरोपी ने उसे नदी में फेंक दिया होगा।
जस्टिस देशवाल ने टिप्पणी की कि आवेदक की बेल अर्जी सिर्फ IO की लापरवाही के कारण एक महीने से ज़्यादा समय तक निपटाई नहीं जा सकी।
कोर्ट ने कहा,
"इस वजह से एप्लीकेंट की आज़ादी छीन ली गई और बेल का केस होने के बावजूद वह एक महीने से ज़्यादा समय तक बेवजह जेल में रहा।"
अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार पर जुर्माना लगाकर एप्लीकेंट को मुआवज़ा देने का प्रस्ताव रखा। हालांकि, AGA ने रिक्वेस्ट की कि जुर्माना न लगाया जाए और उन्होंने भरोसा दिलाया कि भविष्य में राज्य समय पर निर्देश देने की कोशिश करेगा।
इस बात को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कोई जुर्माना नहीं लगाया।
केस की मेरिट पर कोर्ट ने पाया कि एप्लीकेंट को किडनैप हुए व्यक्ति से जोड़ने वाला कोई लास्ट सीन सबूत नहीं था और यह आरोप एक सह-आरोपी के बयान पर आधारित था।
इस तरह यह देखते हुए कि चार्जशीट फाइल हो चुकी है और एप्लीकेंट का कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं है, कोर्ट ने याचिकाकर्ता-आरोपी को जमानत दे दी।
हालांकि, भविष्य में ऐसी देरी को रोकने के लिए हाईकोर्ट ने अब DGP को एक सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया।