धारा 2(वा) दंड प्रक्रिया संहिता के तहत 'निकटतम विधिक उत्तराधिकारी' की कसौटी पर पत्नी को वरीयता, चाचा का दावा खारिज: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-12-27 11:51 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 2(वा) के अंतर्गत पीड़ित अथवा विधिक उत्तराधिकारी की पहचान के लिए अपनाई जाने वाली 'निकटतम विधिक उत्तराधिकारी' की कसौटी पर पत्नी मृतक के चाचा से अधिक अधिकारयुक्त मानी जाएगी। न्यायालय ने कहा कि मृतक की पत्नी, पारिवारिक और विधिक संबंधों की दृष्टि से चाचा की तुलना में अधिक निकट उत्तराधिकारी है।

जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस अभ्देश कुमार चौधरी की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका पर की, जिसमें मृतक के चाचा ने पुलिस से जांच हटाकर केंद्रीय अन्वेषण एजेंसी (CBI) को सौंपने की मांग की थी। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता, जो मृतक का चाचा है, धारा 2(वा) के तहत न तो पीड़ित की श्रेणी में आता है और न ही उसे विधिक उत्तराधिकारी माना जा सकता है, क्योंकि 'निकटतम विधिक उत्तराधिकारी' की कसौटी पर पत्नी का अधिकार चाचा से ऊपर है।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यद्यपि किसी विधि में 'निकटतम विधिक उत्तराधिकारी' की परिभाषा स्पष्ट रूप से नहीं दी गई, फिर भी न्याय के प्रशासन की दृष्टि से यह आवश्यक है कि जो उत्तराधिकारी मृतक के सबसे अधिक निकट हो, वही पीड़ित की ओर से आपराधिक कार्यवाही को आगे बढ़ाने का अधिकार रखे। आपराधिक अपराध को समाज के विरुद्ध अपराध मानते हुए कोर्ट ने कहा कि पीड़ित के अधिकारों की रक्षा करना राज्य का प्राथमिक दायित्व है और इस प्रक्रिया में यह विवाद उत्पन्न नहीं होना चाहिए कि वास्तविक विधिक उत्तराधिकारी कौन है।

मामले की पृष्ठभूमि में वर्ष 2021 में अजीत सिंह की हत्या हुई थी, जिसके बाद कई FIR दर्ज की गईं। मृतक के चाचा ने यह आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट का रुख किया कि एक वरिष्ठ पत्रकार द्वारा जांच एजेंसी को प्रभावित किया जा रहा है। इसलिए जांच किसी स्वतंत्र केंद्रीय एजेंसी को सौंपी जानी चाहिए। हालांकि, मृतक की पत्नी पहले ही इसी प्रकार की याचिका दाखिल कर चुकी थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके बाद पत्नी द्वारा शीर्ष न्यायालय में दायर याचिका भी अंततः वापस ले ली गई।

कोर्ट ने यह भी ध्यान में रखा कि मृतक की पत्नी द्वारा दायर कार्यवाहियों में चाचा को पक्षकार बनाए जाने का अनुरोध पहले ही अस्वीकार किया जा चुका था। इसके बावजूद, चाचा ने पत्नी जैसी ही मांगों के साथ नई याचिकाएं दाखिल कीं, जबकि उन्होंने आरोप पत्र को चुनौती नहीं दी।

खंडपीठ ने कहा कि भले ही चाचा मृतक के निकट रहे हों, लेकिन विधिक दृष्टि से उन्हें पत्नी से अधिक निकट नहीं माना जा सकता। दंड प्रक्रिया संहिता और दीवानी प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के साथ-साथ हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के संदर्भ में भी कोर्ट ने माना कि चाचा न तो 'निकट संबंधी' की श्रेणी में आते हैं और न ही 'विधिक प्रतिनिधि' की।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जांच स्थानांतरण का आदेश तभी दिया जा सकता है, जब जांच एजेंसी द्वारा महत्वपूर्ण साक्ष्यों की उपेक्षा की गई हो। वर्तमान मामले में ऐसा कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया, बल्कि केवल आशंका के आधार पर जांच पर प्रश्न उठाए गए।

इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मृतक का चाचा धारा 2(वा) के तहत पीड़ित नहीं है। उसे जांच स्थानांतरण की मांग करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। इसलिए याचिकाएं खारिज कर दी गईं।

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