औद्योगिक विवाद अधिनियम | श्रम न्यायालय के पास जांच अधिकारी के डिस्चार्ज या ‌डिसमिसल ऑर्डर के निष्कर्ष की सत्यता की जांच करने की पर्याप्त शक्ति: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-04-24 09:56 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि श्रम न्यायालय को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 11-ए के तहत जांच अधिकारी की ओर से पारित डिस्चार्ज या डिसमिसल ऑर्डर में दिए गए निष्कर्ष की सत्यता की जांच करने के लिए पर्याप्त शक्ति दी गई है। जस्टिस दिनेश पाठक की सिंगल बेंच ने कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 11 श्रमिक के ‌डिस्चार्ज या डिसमिसल के मामले में उचित राहत देने के लिए श्रम न्यायालयों/न्यायाधिकरण/राष्ट्रीय न्यायाधिकरण की शक्ति को दर्शाती है।

यह माना गया कि श्रमिक को राहत देने के मामले की जांच करते समय, श्रम न्यायालय को ‌डिस्चार्ज/‌डिसमिसल ऑर्डर की वैधता की जांच करने की शक्ति सौंपी गई है।

मौजूदा मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि आदेश के अंतिम पैराग्राफ में, श्रम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि याचिकाकर्ता को विभागीय जांच के दौरान साक्ष्य प्रस्तुत करने और अपना बचाव करने का पर्याप्त अवसर दिया गया था।

हाईकोर्ट ने आगे इस बात पर जोर दिया कि इस प्रक्रिया के दौरान याचिकाकर्ता को सभी आवश्यक दस्तावेज प्रदान किए गए थे, और प्रक्रियाओं में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया गया था।

हाईकोर्ट ने औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 11 के प्रावधानों का उल्लेख किया, जो श्रम न्यायालयों, न्यायाधिकरणों और राष्ट्रीय न्यायाधिकरणों को श्रमिक के डिस्चार्ज या डिसमिसल के मामलों में उचित राहत प्रदान करने का अधिकार देता है।

इस ढांचे के भीतर, अधिनियम की धारा 11-ए इन निकायों को यह आकलन करने का अधिकार देती है कि क्या डिस्चार्ज या डिसमिसल ऑर्डर उचित था। महत्वपूर्ण बात यह है कि हाईकोर्ट ने माना कि धारा 11-ए की भाषा विभागीय जांच में जांच अधिकारी के तर्क या निष्कर्ष को चुनौती देने के कर्मचारी के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं करती है।

हाईकोर्ट ने माना कि धारा 11-ए में वाक्यांश "संतुष्ट है कि दिस्चार्ज या ‌डिसमिसल का आदेश उचित नहीं था" स्पष्ट रूप से श्रम न्यायाधिकरण के अधिकार को जांच अधिकारी के निष्कर्षों जो टर्मिनेशन के लिए जिम्मेदार है, की शुद्धता की जांच करने के लिए इंगित करता है। हाईकोर्ट ने माना कि यह व्याख्या, जांच अधिकारी के तर्क या निष्कर्षों का विरोध करने के कर्मचारी के अधिकार को कमजोर नहीं करती है। इसलिए, हाईकोर्ट ने माना कि श्रम न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई उचित आधार नहीं था। नतीजतन, हाईकोर्ट ने रिट याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटलः चरण पाल सिंह बनाम पीठासीन अधिकारी श्रम न्यायालय द्वितीय गाजियाबाद और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 264

केस साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एबी) 264

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