एकतरफा तलाक के बाद केस ट्रांसफर की कोशिश देरी की मंशा दर्शाती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-12-18 10:42 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जिस पति ने स्वयं एक अदालत में तलाक की याचिका दायर की और एकतरफा डिक्री हासिल करने के बाद उसी मामले से जुड़ी रिकॉल कार्यवाही को किसी अन्य शहर की अदालत में स्थानांतरित कराने की मांग की, उसका आचरण कार्यवाही को लंबा खींचने की नीयत को दर्शाता है।

जस्टिस सैयद कमर हसन रिज़वी ने पति द्वारा दायर ट्रांसफर प्रार्थना पत्र को खारिज करते हुए टिप्पणी की कि पहले गोंडा की फैमिली कोर्ट को चुनकर तलाक की कार्यवाही शुरू करना और फिर उसी से उत्पन्न कार्यवाही को लखनऊ ट्रांसफर कराने का आग्रह करना, उसके छिपे हुए उद्देश्य की ओर इशारा करता है।

अदालत ने कहा कि यह कदम न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक देरी पैदा करने वाला है।

मामले के अनुसार, पति ने फैमिली कोर्टवगोंडा में तलाक की याचिका दायर की थी, जिसमें पत्नी के विरुद्ध एकतरफा डिक्री पारित हुई। इसके बाद पत्नी ने उस डिक्री को वापस लेने के लिए रिकॉल आवेदन दाखिल किया।

इस रिकॉल कार्यवाही के दौरान पति ने हाईकोर्ट का रुख करते हुए आग्रह किया कि मामले को गोंडा से लखनऊ की किसी फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया जाए।

पति का तर्क था कि तलाक की डिक्री पर उसे सुने बिना रोक लगा दी गई, गोंडा कोर्ट से लौटते समय उस पर कुछ लोगों ने हमला किया और उसे धमकाया गया। साथ ही दोनों पक्ष लखनऊ में रहते हैं, इसलिए वहीं सुनवाई अधिक सुविधाजनक होगी। उसने फैमिली कोर्ट, गोंडा के पीठासीन अधिकारी पर पत्नी के पक्ष में झुकाव का आरोप भी लगाया।

हाईकोर्ट ने पीठासीन अधिकारी पर लगाए गए आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि केवल यह कहना कि अदालत दूसरे पक्ष का पक्ष ले रही है किसी प्रकार के पक्षपात को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मुकदमे की सुनवाई के दौरान परिस्थितियों के अनुसार कई आदेश पारित होते हैं, जिनमें से कुछ किसी पक्ष के प्रतिकूल हो सकते हैं, लेकिन मात्र प्रतिकूल आदेशों के आधार पर जज की निष्पक्षता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। ऐसे आदेशों को चुनौती देने के लिए विधि में उच्च मंच उपलब्ध हैं।

अदालत ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय कुमाऊं मंडल विकास निगम लिमिटेड बनाम गिरजा शंकर पंत का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि पक्षपात के आरोप ठोस साक्ष्यों पर आधारित होने चाहिए न कि सामान्य और अस्पष्ट आरोपों पर।

हमले और धमकी के दावे पर भी हाईकोर्ट ने कहा कि इस संबंध में कोई ठोस सामग्री रिकॉर्ड पर प्रस्तुत नहीं की गई। केवल आशंका या आरोप के आधार पर कार्यवाही को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा अदालत ने यह भी ध्यान दिया कि वर्ष 2019 से दोनों पक्ष लखनऊ में रहने के बावजूद गोंडा की फैमिली कोर्ट में नियमित रूप से कार्यवाही में शामिल होते रहे हैं। ऐसे में इस देर से चरण पर मामले का स्थानांतरण न्यायहित में नहीं होगा।

अंततः हाईकोर्ट ने कहा कि किसी मामले का स्थानांतरण तभी किया जा सकता है, जब यह न्याय के हित में आवश्यक हो और जब लगाए गए आरोप वास्तविक, उचित और प्रमाणित हों। चूंकि पत्नी ने भी कभी गोंडा में सुनवाई को लेकर असुविधा का मुद्दा नहीं उठाया, इसलिए ट्रांसफर की मांग को अस्वीकार कर दिया गया।

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