बलात्कार पीड़िता और उसके बच्चे का DNA टेस्ट नियमित रूप से नहीं कराया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-09-10 09:01 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बलात्कार पीड़िता और उसके बच्चे का DNA टेस्ट सामान्य तौर पर कराने का आदेश नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इसका गहरा सामाजिक प्रभाव पड़ता है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल उन्हीं मामलों में जब अनिवार्य और अपरिहार्य परिस्थितियां रिकॉर्ड पर सामने आएं और DNA टेस्ट कराने की ठोस आवश्यकता सिद्ध हो तभी ऐसा आदेश पारित किया जा सकता है।

जस्टिस राजीव मिश्रा की पीठ एक मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें अभियुक्त ने ट्रायल कोर्ट द्वारा DNA टेस्ट की अर्जी खारिज किए जाने को चुनौती दी थी।

संबंधित मामले में अभियुक्त पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), 452 (गृह-अतिचार), 342 (ग़ैरक़ानूनी हिरासत), 506 (आपराधिक डराने-धमकाने) के अलावा POCSO Act की धारा 5/6 के तहत आरोप लगाए गए थे। चार्जशीट दाख़िल होने के बाद मुकदमा ट्रायल के चरण में पहुंचा और पांच गवाहों के बयान दर्ज भी हो चुके थे।

इसके बाद अभियुक्त ने यह कहते हुए पीड़िता और उसके बच्चे का DNA टेस्ट कराने की अर्जी दायर की कि बच्चा समय से पहले पैदा हुआ लेकिन पूरी तरह विकसित था। इसलिए उसका पिता अभियुक्त नहीं हो सकता। ट्रायल कोर्ट ने इस अर्जी को खारिज कर दिया।

इसके विरुद्ध अभियुक्त ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और दलील दी कि DNA टेस्ट उसके दोषी या निर्दोष होने को साबित करने के लिए ज़रूरी है।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ट्रायल कोर्ट को आरोपों पर विचार करना है और वह मुकदमे से पहले किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता।

अदालत ने यह भी नोट किया कि ट्रायल कोर्ट के इस निष्कर्ष का कि DNA टेस्ट को बलात्कार के मामलों में नियमित रूप से नहीं कराया जा सकता अभियुक्त ने कोई ठोस खंडन नहीं किया।

सुप्रीम कोर्ट के कई फ़ैसलों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा,

“अदालतों को पीड़िता और उसके बच्चे के DNA टेस्ट के लिए दायर प्रार्थनापत्र पर विचार करते समय अत्यधिक सावधानी और सतर्कता बरतनी चाहिए।”

 रिकॉर्ड पर DNA टेस्ट की अनिवार्यता दर्शाने वाली कोई ठोस परिस्थितियां सामने नहीं आईं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश बरकरार रखते हुए अभियुक्त की अर्जी खारिज कर दी।

टाइटल: रामचंद्र राम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

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