AE से विलंबित प्राप्तियों का प्रभाव पहले से ही कार्यशील पूंजी में शामिल: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने TPO को प्राप्तियों पर ब्याज का न्यायनिर्णयन करने का निर्देश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक बार जब करदाता को कार्यशील पूंजी समायोजन प्रदान किया जाता है तो वर्ष के अंत में बकाया प्राप्तियों पर ब्याज लगाने की कोई आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि यह कार्यशील पूंजी समायोजन में शामिल हो जाता है।
जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने दोहराया कि 01 अप्रैल 2010 को या उसके बाद अपने AE को दिए गए बिलों के संबंध में वसूली की तारीख क्या थी और क्या उन्हें 70 दिनों की अनुमत क्रेडिट अवधि के भीतर वसूल किया गया है। यदि नहीं तो उन बिलों पर भी ब्याज लगाया जाना चाहिए।
मामले के तथ्य
करदाता कंपनी ने अंतर-कंपनी प्राप्तियों को असुरक्षित लोन के रूप में पुनः-वर्णित करने और प्राप्तियों को अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय लेनदेन के रूप में मानने की ITAT की कार्रवाई को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
पीठ ने प्रधान आयकर आयुक्त-V बनाम कुसुम हेल्थ केयर प्राइवेट लिमिटेड [ITA संख्या 765/2016] में दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय के मामले में निर्णय का उल्लेख किया, जहां TPO को यह पता लगाने का निर्देश दिया गया कि क्या 70 दिनों की क्रेडिट अवधि के बाद वसूल किए गए बिलों पर ब्याज लगाया जाना है।
यद्यपि पीठ ने TPO को बिलों की जांच करने के लिए ITAT के निर्देश को सही पाया, लेकिन पीठ ने कहा कि बिलों पर ब्याज लगाने का निर्देश आवश्यक नहीं था और TPO को कुसुम हेल्थ केयर के निर्णय को ध्यान में रखते हुए कार्य करने की आवश्यकता है।
पीठ ने यह भी दोहराया कि एक बार जब करदाता को कार्यशील पूंजी समायोजन प्रदान कर दिया जाता है तो वर्ष के अंत में बकाया प्राप्तियों पर ब्याज लगाने की कोई आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि यह कार्यशील पूंजी समायोजन में समाहित हो जाता है।
इसलिए हाईकोर्ट ने TPO को कुसुम हेल्थ केयर के फैसले के आलोक में पूरे पहलू पर गौर करने और तदनुसार आदेश पारित करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल- फीनिक्स लैंप्स लिमिटेड बनाम डीसीआईटी