समान मामला समय पर सुना जा चुका हो तो देरी के कारण अपील खारिज करना अनुचित: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि किसी आदेश को चुनौती देने वाला समान मामला समय पर दायर होने के कारण मेरिट पर सुना दिया गया हो तो देरी का हवाला देकर समान आदेश के खिलाफ दूसरी अपील को खारिज करना न्यायसंगत नहीं होगा।
चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने कहा,
"यह न्यायोचित प्रतीत नहीं होता कि मामले में वादपत्र लौटाने के आदेश की वैधता मेरिट पर जांची जाए, जबकि समान आदेश के खिलाफ समान आधारों पर दायर दूसरी चुनौती को केवल अपील में हुई देरी के आधार पर खारिज कर दिया जाए।"
यह मामला कानपुर नगर की वाणिज्यिक अदालत के आदेश से जुड़ा है, जिसमें वाणिज्यिक वाद संख्या 3/2020 का वादपत्र आदेश VII नियम 10 CPC के तहत वापस करने का आदेश दिया गया। यह आदेश 2024 में पारित हुआ और अपील कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट 2015 की धारा 13(1-A) के तहत 154 दिनों की देरी से दाखिल हुई।
अपीलकर्ता ने देरी माफी याचिका में कहा कि संस्थान के स्वामी की गंभीर बीमारी के कारण वे मुकदमों की निगरानी नहीं कर पाए। स्वास्थ्य लाभ के बाद जब उन्होंने वकील बदला, तब उन्हें आदेश की जानकारी हुई और तुरंत हाईकोर्ट का रुख किया।
साथ ही अपीलकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि अन्य वाणिज्यिक वाद (नंबर 31/2023) में भी ठीक समान आदेश पारित हुआ, जिसके खिलाफ समय पर अपील दायर की गई।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले गवर्नमेंट ऑफ महाराष्ट्र बनाम बोर्से ब्रदर्स इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स प्रा.लि. का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने माना कि समान आदेश पर अपील को मेरिट पर सुनते हुए दूसरी को केवल देरी के आधार पर खारिज करना अनुचित है।
कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता द्वारा दी गई बीमारी की वजह प्रमाणित है और देरी माफी योग्य है। अतः कोर्ट ने अपील को नियमित संख्या आवंटित कर अन्य लंबित अपील के साथ सुनवाई हेतु सूचीबद्ध करने का आदेश दिया।
केस टाइटल: जय केमिकल वर्क्स बनाम एम/एस साई केमिकल्स